समुद्र लंघन के समय किस वानर ने कितनी दूर जाने की बात कही थी?

समुद्र लंघन के समय किस वानर ने कितनी दूर जाने की बात कही थी?
माता सीता की खोज में वानरों का समुद्र तट पर पहुंचना और उसके बाद हनुमान जी द्वारा समुद्र लांघने की बात तो हम सभी जानते ही है। पर एक बात जो अधिक लोग नहीं जानते वो ये कि समुद्र लांघने की चर्चा करते हुए कई वानरों ने अपनी शक्ति के अनुसार, कितनी दूर वे जा सकते हैं, इसका उल्लेख किया था। उस चर्चा में तो हनुमान जी ने कुछ कहा ही नहीं था क्यूंकि श्राप के कारण उन्हें अपने बल का ज्ञान नहीं था। बाद में जामवंत जी ने उन्हें प्रेरित किया।

इस घटना का वर्णन हमें वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के सर्ग ६५ में मिलता है। किष्किंधा कांड के ६४वें सर्ग में जब सम्पाती वानरों को रावण का पता बताते हैं तो अंगद सभी वानरों से पूछते हैं कि कौन इस समुद्र को पार कर सकता है। तब सभी वानर अपनी-अपनी क्षमता बताते हैं। तो आइये जानते हैं कि वाल्मीकि रामायण के अनुसार किस वानर ने कितनी दूर जाने की बात कही थी।
  • गज ने कहा कि वो १० योजन की छलांग मार सकते हैं।
  • गवाक्ष ने २० योजन तक जाने की बात की।
  • शरभ ने ३० योजन तक जाने की बात की।
  • ऋषभ ने कहा कि वे ४० योजन तक जा सकते हैं।
  • गंधमादन ने कहा कि वे ५० योजन तक की छलांग मारने में सक्षम हैं।
  • मैन्द ने ६० योजन तक जाने की बात की।
  • द्विविद ने कहा कि वो ७० योजन तक जा सकते हैं।
  • सुषेण ने ८० योजन तक जाने की बात की।
  • फिर जामवंत जी ने, जो सबसे वृद्ध थे, उन्होंने कहा कि पहले युवावस्था में मुझमें दूर तक छलांग लगाने की शक्ति थी। जब भगवान वामन ने तीन पग में पूरी सृष्टि नापी थी उस समय मैंने थोड़े ही समय में उनके उस विराट स्वरुप की २१ परिक्रमा कर ली थी। हालाँकि अब मैं उस अवस्था को पार कर चुका हूँ किन्तु फिर भी श्रीराम के कार्य के लिए मैं ९० योजन तक चला जाऊंगा।
  • अंत में अंगद ने सबसे कहा कि मैं इस १०० योजन के महासागर को लाँघ तो जाऊंगा लेकिन उधर से लौटने में मेरी वही शक्ति रहेगी या नहीं, इसके बारे में निश्चित रूप से नहीं कह सकता। इसपर जामवंत उन्हें सांत्वना देते हुए कहते हैं कि अंगद यदि चाहें तो १ लाख योजन तक भी जा सकते हैं किन्तु फिर भी चूँकि वे उनके युवराज हैं इसीलिए उनका वहां जाना उचित नहीं।
इसके बाद की कथा तो हम जानते हैं। जामवंत जी के प्रेरित करने पर हनुमान जी ने उस १०० योजन समुद्र को लांघा। उस समय हनुमान जी के बल की बड़ी सुन्दर व्याख्या हमें रामायण में मिलती है जिसके बारे में हम एक लेख अलग से प्रकाशित करेंगे।

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