सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माण्ड से किन-किनकी उत्पत्ति हुई?

सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माण्ड से किन-किनकी उत्पत्ति हुई?
जब हम व्यास महाभारत पढ़ते हैं तो उसके पहले ही पर्व, आदिपर्व के अनुक्रमाणिका पर्व के श्लोक २१ में हमें ब्रह्माण्ड की उत्पति और फिर उस ब्रह्माण्ड से जिन-जिन लोगों की उत्पत्ति हुई, उसका वर्णन मिलता है। इससे हमें सृष्टि के आरम्भ का एक सार मिल जाता है।

इस वर्णन के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था, प्रकाश का कहीं नाम तक नहीं था। उसी समय उत्पत्ति के बीज स्वरुप एक असीम और विशाल अंडा प्रकट हुआ। ये घटना सबसे पहले कल्प, अर्थात ब्रह्मकल्प के आरम्भ की बताई जाती है।

उस अंडे से सबसे पहले समस्त जगत के मूल, परमपिता ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्माजी के नाम पर ही उस अंडे का नाम ब्रह्म-अण्ड पड़ा जिसे आज ब्रह्माण्ड के नाम से जाना जाता है। फिर ब्रह्माजी की प्रेरणा से उसी अंडे से अन्य लोगों की उत्पत्ति हुई। वे थे -
  • ११ रूद्र - शम्भू, पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, भव, सदाशिव, शिव, हर, शर्व एवं कपाली।
  • परमेष्ठी
  • प्रचेता और उनके पुत्र
  • दक्ष और उनके ७ पुत्र - क्रोध, तम, दम, विक्रीत, अंगिरा, कर्दम और अश्व।
  • २१ प्रजापति - ७ सप्तर्षि एवं १४ मनु
  • १० विश्वदेवगण - क्रतु, दक्ष, वसु, सत्य, कला, काम, धृति, कुरु, शंकुमात्रा और वामन। 
  • १२ आदित्य - इंद्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अयर्मा, भग, विवस्वान, अंशुमान, मित्र, वरुण, विष्णु (वामन)।
  • ८ वसु - आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष एवं प्रभास।
  • २ अश्विनीकुमार - दासत्य एवं दसरा।
  • यक्ष
  • साध्य
  • पिशाच
  • गुह्यक
  • पितर
  • ब्रह्मर्षिगण
  • राजर्षिगण
  • जल
  • अग्नि
  • पृथ्वी
  • वायु
  • अंतरिक्ष
  • द्युलोक
  • १० दिशाएं - पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान, ऊर्ध्य एवं अधो।
  • संवत्सर
  • ६ ऋतुएँ - वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत एवं शिशिर।
  • १२ मास - चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रवण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, आग्रहण्य, पूष, मेघ एवं फाल्गुन।
  • २ पक्ष - कृष्ण एवं शुक्ल।
  • दिवस
  • रात्रि
इस ब्रह्माण्ड से जो देवताओं की उत्पत्ति हुई उनकी संख्या ३३००० थी, उनमें से ३०० प्रमुख और उनमें से भी ३३ प्रमुख माने गए हैं। इन्ही ३३ देवताओं को ३३-कोटि देवता कहा गया है। १२ आदित्य, ११ रूद्र, ८ वसु और २ अश्विनी कुमार मिलकर ३३ कोटि देवताओं का समूह बनाते हैं।

इन ३३ में से एक विवस्वान के पुत्रों का भी संक्षेप वर्णन दिया गया है। इस वर्णन में इनके कई नाम बताये गए हैं जो हैं - दिवःपुत्र, बृहत्, भानु, चक्षु, आत्मा, विभावसु, सविता, ऋचीक, अर्क, भानु, आशावाहन तथा रवि। इनमें से जो रवि हैं, वही पृथ्वी पर पूजित हैं।
  • रवि के पुत्र हुए देवभ्राट
  • देवभ्राट के पुत्र हुए सुभ्राट
  • सुभ्राट के तीन पुत्र हुए - दशज्योति, शतज्योति एवं सहस्रज्योति
  • दशज्योति के १०००० (दस हजार) पुत्र, शतज्योति के १००००० (एक लाख) पुत्र एवं सहस्रज्योति के १०००००० (दस लाख) पुत्र हुए। उन्हें से आगे चल कर सभी राजवंश चले और सृष्टि का अनंत विस्तार हुआ।
तो इस प्रकार उस एक अंडे से समस्त सृष्टि के विस्तार का संक्षेप वर्णन हमें महाभारत में मिलता है।

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