अधिकतर लोगों को ये पता है कि महाभारत में कुल १८ पर्व और १००००० श्लोक हैं। जनमानस में भी यही जानकारी उपलब्ध है किन्तु बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि वास्तव में महर्षि वेदव्यास ने बहुत ही वृहद् महाभारत की रचना की थी। इतना वृहद् जिसकी हम लोग कदाचित कल्पना भी नहीं कर सकते। इसका वर्णन हमें महाभारत के प्रथम और द्वितीय अध्याय में मिलता है।
महाभारत के अनुसार इसकी रचना सबसे पहले महर्षि वेदव्यास ने अपने मन में की। फिर वे इस सोच में पड़ गए कि इसे जनमानस तक किस प्रकार पहुँचाया जाये? तब स्वयं ब्रह्माजी ने उनके पास आकर उनसे इसे लिपिबद्ध करने को कहा।
तब वेदव्यास जी ने कहा - "हे प्रभु! मैंने इस महाकाव्य में सपूर्ण वेदों का गुप्ततम रहस्य तथा सभी शास्त्रों का सार संकलित किया है। केवल वेद ही नहीं बल्कि उसके अंग और उपनिषदों का भी इसमें विस्तृत वर्णन है। इस ग्रन्थ में पुराणों का सार, भूत, वर्तमान और भविष्य की घटनाओं का वर्णन, बुढ़ापा, मृत्यु, भय, रोग, पदार्थ, धर्म, आश्रम, वर्ण, तपस्या, ब्रह्मचर्य, कमर्काण्ड, पृथ्वी, चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, योनि, तीर्थ, देश, नदी, पर्वत, वन, समुद्र, नगर, दुर्ग, भाषा, जाति, युद्ध, सिद्धि आदि सभी का वर्णन है। जो कुछ भी इस जगत में है उसका सार इस ग्रन्थ में है और जो इस ग्रन्थ में नहीं है वो निश्चय ही कहीं और नहीं है। फिर इतने बड़े ग्रन्थ को भला कौन लिपिबद्ध कर सकता है?"
ये सुनकर ब्रह्माजी ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि "निश्चय ही इस संसार में कोई ऐसा नहीं है जो इस महाकाव्य को लिख सके। अतः तुम गणेशजी का स्मरण करो।" ऐसा कह कर ब्रह्माजी पुनः अपने लोक चले गए। तब उनकी आज्ञा के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने श्रीगणेश का स्मरण किया जिससे गणपति वहां आये। वे उस ग्रन्थ को लिखने के लिए तैयार तो हुए किन्तु एक शर्त रख दी कि इस ग्रन्थ को लिखते समय मेरी लेखनी रुकनी नहीं चाहिए।" तब महर्षि वेदव्यास ने उनकी बात मान ली पर एक प्रार्थना की कि जब तक श्रीगणेश किसी श्लोक को पूरी तरह समझ ना लें, तब तक वे उसे नहीं लिखे। श्रीगणेश ने उनकी ये प्रार्थना मान ली।"
गणेश जी ने जब लिखना आरम्भ किया तो उनकी लेखनी अत्यंत तीव्र थी। तब व्यासजी बीच-बीच में कुछ ऐसे श्लोक बोल देते थे जिसका अर्थ बाहर से कुछ और होता था और अंदर से कुछ और। इससे श्रीगणेश तक को उसे ठीक-ठीक समझने में थोड़ा समय लग जाता था और इसी बीच वेदव्यास अनेकों श्लोकों की रचना कर लेते थे। इस प्रकार श्रीगणेश को उलझाने के लिए महर्षि वेदव्यास ने जो गूढ़तम श्लोक कहे उनकी संख्या ८८०० (आठ हजार आठ सौ) मानी जाती है।
इसके बारे में स्वयं महर्षि कहते हैं कि "इस ग्रन्थ में ८८०० श्लोक ऐसे हैं जिसका अर्थ केवल मैं समझता हूँ या फिर शुकदेव। वे श्लोक इतने गूढ़ हैं कि स्वयं सर्वज्ञ गणेश जी भी उन श्लोकों का विचार करते रामय क्षण भर के लिए ठहर जाते थे।"
रामायण के उलट महाभारत की संरचना अत्यंत जटिल है। जहाँ रामायण को महर्षि वाल्मीकि ने कांड, सर्ग और श्लोकों में बाँट कर सरल रूप से लिखा, वहीँ महर्षि वेदव्यास ने इसकी संरचना को जटिल ही रखा।
महाभारत केआदिपर्व के प्रथम अध्याय के अनुक्रमाणिका पर्व के श्लोक १०५ में ऐसा वर्णित है कि महर्षि वेदव्यास ने सबसे पहले ६०००००० (साठ लाख) श्लोकों की एक वृहद् संहिता बनाई। उसके ३०००००० (तीस लाख) श्लोकों को देवलोक के देवताओं ने अपने पास रख लिया। १५००००० (पंद्रह लाख) श्लोकों को पितृलोक वालों ने और १४००००० श्लोकों को गन्धर्वलोक के गंधर्वों ने पाठ करने के लिए अपने पास रख लिया। अंत में जो १००००० (एक लाख) श्लोक बच गए वही इस मृत्युलोक, अर्थात पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों के लिए उपलब्ध हो पाए। इसे ही "आद्यभारत" या "महाभारत" कहा गया। इसके बाद महर्षि वेदव्यास ने इसे छोटा कर २४००० (चौबीस हजार) श्लोकों की एक संहिता बनाई जो "भारत" के नाम से प्रसिद्ध हुई। बाद में उन्होंने इस ग्रन्थ का एक अनुक्रमाणिका (इंडेक्स) बनाई जिसमें केवल १५० (एक सौ पचास) श्लोक हैं। इसे सबसे पहले महर्षि व्यास ने अपने पुत्र शुकदेव जी को सुनाया।
देवलोक वाले श्लोकों को देवर्षि नारद ने, पितृलोक वाले श्लोकों को असित-देवल ने, गंधर्वलोक वाले श्लोकों को शुकदेव जी ने और मनुष्यलोक, अर्थात आज जो महाभारत हमारे सामने है, उसे महर्षि वेदव्यास के शिष्य धर्मात्मा वैशम्पायन ने सुनाया। वैशम्पायन जी द्वारा सुनाये गए उसी १००००० (एक लाख) श्लोकों को महाभारत युद्ध की समाप्ति पर प्रसिद्ध सूत जी ने नैमिषारण्य तीर्थ में महर्षि शौनक की सभा में आये असंख्य ऋषियों को कथा के रूप में सुनाया। सूत जी द्वारा सुनाई वही कथा आज हम महाभारत के रूप में पढ़ते हैं।
यदि महाभारत की मूल संरचना के बारे में बात की जाये तो इसका वर्णन भी हमें आदिपर्व के द्वितीय अध्याय के पर्वसंग्रह पर्व में मिलता है। इसके अनुसार इन १००००० (एक लाख) श्लोकों को महर्षि वेदव्यास ने १०० पर्वों में बांटा। बाद में इन्ही १०० पर्वों को नैमिषारण्य में १८ पर्वों के रूप में सुव्यवस्थित कर सूत जी ने महर्षि शौनक की सभा में सुनाया। तब से महाभारत को हम इन्ही १८ पर्वों के रूप में पढ़ते आ रहे हैं। ये सभी पर्व अनेकों अध्यायों में बंटे हैं और सभी अध्यायों में अनेकों श्लोक हैं। इनमें से शांतिपर्व सबसे बड़ा और महाप्रस्थानिक पर्व सबसे छोटा है।
- आदिपर्व में २२७ (दो सौ सत्ताईस) अध्याय और ८८८४ (आठ हजार आठ सौ चौरासी) श्लोक हैं।
- सभापर्व में ७८ (अठहत्तर) अध्याय और २५११ (दो हजार पांच सौ ग्यारह) श्लोक हैं।
- वनपर्व में २६९ (दो सौ उनहत्तर) अध्याय और ११६६४ (ग्यारह हजार छः सौ चौसठ) श्लोक हैं।
- विराटपर्व में ६७ (सढ़सठ) अध्याय और २०५० (दो हजार पचास) श्लोक हैं। विदुरनीति इसी पर्व का भाग है।
- उद्योगपर्व में १८६ (एक सौ छियासी) अध्याय और ६६९८ (छः हजार छः सौ अट्ठानबे) श्लोक हैं।
- भीष्मपर्व में ११७ (एक सौ सत्रह) अध्याय और ५८८४ (पांच हजार आठ सौ चौरासी) श्लोक हैं। प्रसिद्ध श्रीमद्भगवतगीता इस पर्व का भाग है। स्वयं भगवद्गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं।
- द्रोणपर्व में १७० (एक सौ सत्तर) अध्याय और ८९०९ (आठ हजार नौ सौ नौ) श्लोक हैं।
- कर्णपर्व में ६९ (उनहत्तर) अध्याय और ४९६४ (चार हजार नौ सौ चौसठ) श्लोक हैं।
- शल्यपर्व में ५९ (उनसठ) अध्याय और ३२२० (तीन हजार दो सौ बीस) श्लोक हैं।
- सौप्तिकपर्व में १८ (अठारह) अध्याय और ८७० (आठ सौ सत्तर) श्लोक हैं।
- स्त्रीपर्व में २७ (सत्ताईस) अध्याय और ७७५ (सात सौ पचहत्तर) श्लोक हैं।
- शांतिपर्व में ३३९ (तीन सौ उनचालीस) अध्याय और १४७३२ (चौदह हजार सात सौ बत्तीस) श्लोक हैं। ये महाभारत का सबसे बड़ा पर्व है।
- अनुशासनपर्व में १४६ (एक सौ छियालीस) अध्याय और ८००० (आठ हजार) श्लोक हैं।
- अश्वमेधिकपर्व में १०३ (एक सौ तीन) अध्याय और ३३२० (तीन हजार तीन सौ बीस) श्लोक हैं।
- आश्रमवासिकपर्व में ४२ (बयालीस) अध्याय और १५०६ (एक हजार पांच सौ छः) श्लोक हैं।
- मौसलपर्व में ८ (आठ) अध्याय और ३२० (तीन सौ बीस) श्लोक हैं।
- महाप्रस्थानिकपर्व में ३ (तीन) अध्याय और १२३ (एक सौ तेईस) श्लोक हैं। ये महाभारत का सबसे छोटा पर्व है।
- स्वर्गरोहणपर्व में ५ (पांच) अध्याय और २०९ (दो सौ नौ) श्लोक हैं।
इन १८ पर्वों के अतिरिक्त महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के खिलपर्व (परिशिष्ट या छोड़ा हुआ भाग) की भी रचना की जिसका नाम हरिवंशपुराण है। इसे हरिवंशपर्व भी कहते हैं। आरम्भ में हमने महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित जिस १०० पर्वों की बात की थी, उनमें से ९७ पर्वों को महाभारत के १८ पर्वों में संकलित किया गया है। बांकी बचे ३ (तीन) पर्वों को हरिवंशपुराण के अंदर डाला गया है। हरिवंश पुराण में तीन पर्व, ३१८ (तीन सौ अट्ठारह) अध्याय और १२००० (बारह हजार) श्लोक हैं। ऐसा कहा जाता है कि हरिवंशपुराण ना पढ़ने पर महाभारत पढ़ने का फल प्राप्त नहीं होता।
- हरिवंशपर्व में ५५ (पचपन) अध्याय और ३११३ (तीन हजार एक सौ तेरह) श्लोक हैं।
- विष्णुपर्व में १२८ (एक सौ अट्ठाइस) अध्याय और ७३६० (सात हजार तीन सौ साठ) अध्याय हैं।
- भविष्यपर्व में १३५ (एक सौ पैंतीस) अध्याय और १५२७ (एक हजार पांच सौ सत्ताईस) श्लोक हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया टिपण्णी में कोई स्पैम लिंक ना डालें एवं भाषा की मर्यादा बनाये रखें।