महाभारत में वर्णित २४ महान राजा

महाभारत में वर्णित २४ महान राजा
महाभारत के आदिपर्व के प्रथम अध्याय के अनुक्रमणिकपर्व में हमें महाराज धृतराष्ट्र और संजय का एक प्रसंग मिलता है जिसमें संजय ने इतिहास के २४ महान राजाओं का वर्णन किया है। ये प्रसंग तब का है जब धृतराष्ट्र अपने पुत्रों के वध से अत्यंत व्याकुल थे। उस समय संजय ने उन्हें महर्षि व्यास और देवर्षि नारद के मुख से कहे गए उन २४ राजाओं के विषय में बताया है जो इतिहास में सबसे उत्कृष्ट राजाओं के रूप में विख्यात हुए। आज हम उन्ही २४ राजाओं के विषय में संक्षेप में जानेगे।

इन २४ राजाओं का वर्णन हमें इस पर्व के श्लोक २२३, २२४, २२५, २२६, २२७, २२८ और २२९ में मिलता है। इसके अतिरिक्त इसी पर्व के श्लोक २३१ से २४० में और भी कई प्रसिद्ध राजाओं का वर्णन है लेकिन उनमें से भी ये २४ सबसे प्रसिद्ध माने जाते हैं। यहाँ पर उन सभी राजाओं के विषय में बताने का संजय का उद्देश्य ये बताना था कि इतने महान-महान राजा भी अपनी देह को त्याग कर स्वर्ग को गए, फिर धृतराष्ट्र के पुत्रों का वीरगति को प्राप्त होना भी प्रारब्ध ही था। आइये उन २४ राजाओं के बारे में संक्षेप में जान लेते हैं।
  1. शैब्य: यहाँ शैब्य का अर्थ महाराज शिबि से है जो चन्द्रवंश में जन्में थे। महाराज ऊनिशर के पुत्र शिबि को हिन्दू धर्म के महानतम दानी राजाओं में एक माना जाता है। एक बार इंद्रदेव और अग्निदेव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए बाज और कबूतर का रूप बनाया। कबूतर की रक्षा के लिए शिबि ने अपने शरीर का मांस बाज के लिए तौलना शुरू किया और जब तब भी कबूतर का वजन उससे अधिक निकला तो उन्होंने स्वयं को ही बाज को अर्पित कर दिया। उनकी ऐसी दानवीरता देख कर देवराज और अग्निदेव प्रकट हुए और उन्हें कई आशीर्वाद दिए।
  2. सृंजय: महाराज सृंजय त्रेतायुग के एक राजा थे। इनके पिता का नाम देवव्रत था। इनके पुत्र थे दिवोदास और दिवोदास के पुत्र सुदास ने ही प्रसिद्ध दाशराज का युद्ध लड़ा था। स्वयं महर्षि वशिष्ठ महाराज सृंजय के कुल के मार्गदर्शक थे।
  3. सुहोत्र: महाराज सुहोत्र चन्द्रवंश में जन्में एक महान राजा था। इनके पितामह महान महाराज भरत और पिता महाराज भुमन्यु थे। इनकी माता का नाम पुष्करणी था। अपने पितामह की भांति इन्होने भी सदैव धर्मपूर्वक राज्य किया।
  4. रंतिदेव: महाराज रंतिदेव इतिहास के सबसे बड़े दानियों में से एक हैं। कहते हैं वो किसी का दुःख नहीं देख सकते थे और जो भी उनके पास आता था वो उसे कुछ ना कुछ अवश्य देते थे। एक बार उनके राज्य में अकाल पड़ गया और वे ४९ दिनों तक भूखे रहे। ५०वें दिन उन्हें किसी प्रकार भोजन मिला। तभी एक ब्राह्मण उनके द्वार पर आये। उन्होंने आधा भोजन उन्हें दे दिया। बांकी वे अपने परिवार को देने ही वाले थे कि एक शूद्र अपने कुत्ते के साथ उनके द्वार पर आये। तब उन्होंने बचे हुए भोजन से आधा उन्हें दे दिया। फिर उस शूद्र ने कहा कि उनका कुत्ता भी भूखा है। इसपर रंतिदेव ने सारा भोजन कुत्ते को दे दिया। अब उनके पास केवल जल शेष था। वे जल ही ग्रहण करने वाले थे कि एक चांडाल ने जल की याचना की। तब उन्होंने वो जल भी उन्हें दे दिया। उसी समय उन्हें त्रिदेवों ने दर्शन दिए जो उनकी प्ररीक्षा ले रहे थे। अकाल समाप्त हुआ और रंतिदेव को उनका राज्य मिल गया।
  5. काक्षीवान: महाराज काक्षीवान प्राचीनकाल के एक राजा थे। उनकी एक पुत्री थी जिनका नाम भद्रा। भद्रा का विवाह ऋषि ऋषिताश्व के साथ हुआ। काक्षीवान भी अपनी दानवीरता और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे।
  6. औशिज: ये भी प्राचीन काल के महान राजा थे। उनका प्रताप ऐसा था कि कुछ काल तक इन्होने इन्द्रपद प्राप्त किया और देवराज का कार्यभाल संभाला। कुछ स्थानों पर इन्हे महर्षि अंगिरस का पुत्र बताया गया है।
  7. बाह्लीक: एक राजा के रूप में इनकी बड़ी कम चर्चा होती है किन्तु ये भी बड़े प्रसिद्ध शासक थे। इनके पिता का नाम प्रतीप था। महाराज प्रतीप के तीन पुत्र थे - देवापि, बाह्लीक और शांतनु। देवापि ने कम आयु में ही संन्यास ग्रहण कर लिया। उस समय हस्तिनापुर राज्य की सीमायें सुरक्षित नहीं थी इसीलिए अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए बाह्लीक सदैव युद्ध में तत्पर रहे और सीमाओं पर ही शासन किया और बाह्लीक साम्राज्य की स्थापना की। इसी कारण उनके छोटे भाई शान्तनु को राज्य मिला। शांतनु के गंगा से देवव्रत नामक पुत्र हुए जो आगे चलकर भीष्म के नाम से विख्यात हुए। इस प्रकार बाह्लीक भीष्म के चाचा हुए। महाभारत के युद्ध में बाह्लीक ने भी भाग लिया था और महाबली भीम ने उनका वध किया था।
  8. दमन: बुध के इला से प्रतापी पुत्र हुए महाराज पुरुरवा। इनके कई पुत्र हुए जिनमें आयु ज्येष्ठ थे। इन्ही महाराज पुरुरवा के एक और पुत्र हुए महाराज दमन जो अपने पिता की भांति ही महान राजा हुए।
  9. चैद्य: चंद्रवंशियों में ही ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु से यादवकुल चला। इन्ही में एक प्रतापी राजा हुए महाराज चैद्य। इन्होने ही चेदि नामक साम्राज्य की स्थापना की। इन्ही के कुल में आगे चल कर श्रीकृष्ण के फुफेरे भाई शिशुपाल ने जन्म लिया था।
  10. शर्याति: वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक थे महाराज शर्याति। इनका विवाह श्रीष्टिका नामक कन्या से हुए जिनसे उन्हें जुड़वाँ संतानें, एक पुत्र और एक कन्या हुई। पुत्र का नाम था आनर्त और कन्या का सुकन्या। सुकन्या ने गलती से महर्षि च्यवन की आँखों को फोड़ दिया जिससे रुष्ट होकर महर्षि च्यवन ने महाराज शर्याति के राजकुल को श्राप दे दिया। उससे बचने के लिए महाराज शर्याति ने अपनी पुत्री सुकन्या का विवाह महर्षि च्यवन से कर दिया।
  11. नल: महाराज वीरसेन के पुत्र नल को कौन नहीं जनता। एक हंस द्वारा उस समय की विख्यात सुंदरी दमयंती के विषय में सुनकर वे उनके स्वयंवर में गए और उन्हें प्राप्त किया। इनकी दो संताने हुई - पुत्र इन्द्रसेन और पुत्री इन्द्रसेना। कलि के कुचक्र के कारण इन्होने अपना सब कुछ खो दिया। और तो और इन्हे अपनी पत्नी से भी बिछड़ना पड़ा। बाद में देवताओं के आशीर्वाद से बहुत कष्ट और संघर्ष के बाद दोनों का मिलन हुआ और नल को अपना राज्य प्राप्त हुआ।
  12. विश्वामित्र: ऋषियों में श्रेष्ठ, राजर्षि और ब्रह्मर्षि विश्वामित्र सर्वत्र पूज्य हैं। इनका वास्तविक नाम कौशिक था और महाराज गाधि इनके पिता थे। ये एक महान राजा थे किन्तु नंदिनी गाय के कारण इनका विवाद ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से हो गया। तब इन्होने भी ब्रह्मर्षि बनने की जिद ठानी और राज्य छोड़ घोर तप करने लगे। इसपर देवराज इंद्र ने मेनका को भेज कर इनका तप तोड़ दिया। मेनका से इन्हे एक पुत्री हुई जिसका इन्होने त्याग कर दिया और पुनः तपस्या करने चले गए। वही पुत्री ऋषि कण्व की दत्तक पुत्री बनी और शकुंतला के नाम से प्रसिद्ध हुई जिसका विवाह महाराज दुष्यंत से हुआ। अंततः महर्षि विश्वामित्र ने ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया। यही महाराज दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को मांग कर ले गए थे और इन्ही के संरक्षण में श्रीराम ने तड़का और सुबाहु का वध किया।
  13. अम्बरीष: महाराज युवनाश्व के पुत्र मान्धाता ने बिन्दुमती नामक कन्या से विवाह किया। इससे इन्हे तीन पुत्र हुए - पुरुकुत्स, अम्बरीष और मुचुकंद। अम्बरीष इतने बड़े विष्णुभक्त थे कि श्रीहरि ने इनकी रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र को नियुक्त कर दिया था। जब महर्षि दुर्वासा ने महाराज अम्बरीष को मारने के लिए कृत्या भेजी तो सुदर्शन चक्र ने कृत्या का नाश कर दिया और फिर महर्षि दुर्वासा को भी मारने चला। अंततः महाराज अम्बरीष ने ही महर्षि दुर्वासा के प्राण बचाये।
  14. मरुत्त: महाराज मरुत्त एक चक्रवर्ती सम्राट थे। इनकी सात रानियां और १८ पुत्र थे। इन्होने एक ऐसा महान यज्ञ किया जिसमें उन्होंने अथाह स्वर्ण का दान किया। वो स्वर्ण इतना अधिक था कि याचक ले ही ना जा पाए और वो अनंत धनराशि हिमालय के नीचे दब गयी। जब युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ करना चाहा तो उस समय उनके पास धन नहीं था। तब महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को महाराज मरुत्त के विषय में बताया और फिर पांडवों ने उन्हें के धन को निकाल कर उस यज्ञ को पूर्ण किया।
  15. मनु: महाराज मनु के विषय में कौन नहीं जनता। मनु कई हुए हैं किन्तु वर्तमान मन्वन्तर के मनु का नाम है वैवस्वत मनु। इनके १० पुत्र हुए जिनमें इक्षवाकु ज्येष्ठ थे। इन्ही के पुत्र शर्याति के विषय में हम पहले बता चुके हैं। इनके पिता हैं सूर्य और माता है शरण्यु। इन्ही के १० पुत्रों से समस्त सूर्यवंशी राजकुल चले। ये थे - इक्ष्वाकु, धृष्ट, नरिष्यन्त, दृष्ट, नृग, कुरुष, शर्याति, नाभाग, प्रांशु, पृषध एवं इल।
  16. इक्षवाकु: महाराज वैवस्वत मनु के ज्येष्ठ पुत्र इक्षवाकु एक महान राजा थे। इन्होने ही अयोध्या नगरी को बसाया था और उसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। इनका वर्णन हिन्दू धर्म के साथ साथ जैन धर्म में भी मिलता है। इन्ही से सूर्यवंश चला और उसी में आगे चल कर भगवान श्रीराम ने अवतार लिया था।
  17. गय: महर्षि कश्यप के पुत्र गय, जो आगे चलकर गयासुर नाम से प्रसिद्ध हुए एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके स्पर्श से पापी मनुष्य भी स्वर्ग चले जाते थे। इससे सृष्टि में अव्यवस्था फ़ैल गयी और तब ब्रह्माजी के आदेश पर गय एक स्थान पर स्थिर हो गए। वही स्थान आज गया के नाम से प्रसिद्ध है।
  18. भरत: महाराज दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के प्रताप को कौन नहीं जनता। इन्ही के कुल में आगे चल कर पांडवों और कौरवों का जन्म हुआ। ये इतिहास के सर्वाधिक प्रसिद्ध चक्रवर्ती सम्राटों में से एक हैं। ये इतने प्रतापी थे कि बचपन में ही सिंहों के साथ खेला करते थे। उन्ही के नाम पर हमारा देश भारतवर्ष कहलाता है।
  19. श्रीराम: क्या इनके विषय में कुछ बताने के आवश्यकता है? श्रीराम तो विश्व के कण-कण में बसे हैं। महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या के पुत्र के रूप में भगवान विष्णु अपने सातवें अवतार श्रीराम के रूप में जन्में। माता सीता इनकी पत्नी और भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न इनके भाई थे। अपने पिता के मान की रक्षा के लिए इन्होने १४ वर्ष का वनवास स्वीकार किया। वहाँ रावण ने माता सीता का हरण कर लिया। तब इन्होने सुग्रीव से मित्रता की और वानरों की सेना लेकर लंका पर चढ़ाई की और अंततः रावण का वध किया।
  20. शशबिन्दु: महाराज शशबिन्दु भी बड़े प्रतापी राजा थे। इनकी पहुँच यमपुरी तक थी और वे वही रह कर तपस्या किया करते थे। इनकी १००००० रानियां थी और हर रानी से इन्हे १००० पुत्र प्राप्त हुए। इन्होने अपने जीवन में १०००००० यज्ञ किये और अपना सब कुछ दान कर दिया। वायुपुराण में इन्हे प्रातःस्मरणीय बताया गया है।
  21. भगीरथ: आज माता गंगा जो पृथ्वी पर हैं उसका कारण महाराज भगीरथ ही थे। ये श्रीराम के पूर्वज थे जो अपने पूर्वज महाराज सगर की मुक्ति के लिए माता गंगा को पृथ्वी पर लाने के घोर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से ही माता गंगा पृथ्वी पर आयी और उन्ही के नाम पर वे भागीरथी भी कहलाई।
  22. कृतवीर्य: हैहयवंशी सम्राट कर्त्यवीर्य एक महान योद्धा और राजा थे। इनका जन्म चन्द्रवंश में हुआ था और उनकी मित्रता महर्षि जमदग्नि से थी। ये इतने प्रतापी थे कि इन्होने स्वयं रावण को भी परास्त किया। अपने पिता से विरोध के कारण भगवान परशुराम ने इनका वध कर दिया। बाद में जब कर्त्यवीर्य के पुत्रों ने महर्षि जमदग्नि का वध कर दिया तो उससे क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने २१ बार क्षत्रियों का विनाश कर दिया।
  23. जन्मेजय: यहाँ थोड़ा सा मतभेद है। कुछ लोग इन्हे वैदिक काल के महान राजा जन्मेजय मानते हैं जिनका वर्णन ब्रह्म पुराण और मत्स्य पुराण में मिलता है। ये सूर्यवंशी थे जिनका वर्णन इक्षवाकु कुल में आता है। वहीँ कुछ लोग इन्हे परीक्षित के पुत्र जन्मेजय मानते हैं। किन्तु जिस समय संजय ने धृतराष्ट्र को इन २४ राजाओं के विषय में बताया उस समय तो जन्मेजय के पिता परीक्षित का भी जन्म नहीं हुआ था। हालाँकि कुछ लोगों का तर्क है कि संजय को महर्षि वेदव्यास से दिव्य दृष्टि प्राप्त थी और उन्हें भूत, वर्तमान और भविष्य का ज्ञान था इसीलिए जन्मेजय का नाम यहाँ आया है लेकिन फिर भी मेरे विचार में ये सूर्यवंशी राजा जन्मेजय ही थे।
  24. ययाति: सबसे पहले चक्रवर्ती सम्राट। महाराज पुरुरवा के प्रपौत्र, महाराज आयु के पौत्र और महाराज नहुष के पुत्र। इनकी दो पत्नियां थी - दैत्यगुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और असुरराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा। इनके कुल पांच पुत्र हुए - देवयानी से यदु और तर्वसु और शर्मिष्ठा से द्रुहु, अनु और पुरु। इन्ही पांचों से समस्त चंद्रवंशी राजकुल चले। यदु से यदुवंश चला और उन्ही के कुल में ही आगे चल कर भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। पुरु से कुरुवंश चला और उन्ही के वंश में आगे चल कर कौरवों और पांडवों का जन्म हुआ।
इन २४ राज्यों के अतिरिक्त भी इसी पर्व के श्लोक २३१ से २४० में और भी कई प्रसिद्ध राजाओं का वर्णन है। वे हैं - पुरु, कुरु, यदु, शूर, विश्वगण, अनुह, युवनाश्व, कुकुत्स्थ, रघु, विजय, वीतिहोत्र, अंग, भव, श्वेत, बृहद्गुरु, ऊनिशर, शतरथ, कंक, दुलिदुह, द्रुम, दंबोधव, पर, वेन, सगर, संस्कृति, निमि, अजेय, परशु, पुण्ड्र, शम्भू, देवावृध, देवह्य, सुप्रतिम, सुप्रतीक, बृहद्रथ, सुकृतु, नल, सत्यव्रत, शांतभय, सुमित्र, सुबल, प्रभु, जानुजंग, अनरण्य, अर्क, प्रियभृत्य, शुचिव्रत, बलबंधु, निरमर्द, केतुश्रृंग, बृहद्वल, धृष्टकेतु, बृहतकेतु, दीप्तकेतु, निरामय, अवीक्षित, चपल, धूर्त, कृतबन्धु, दृढ़शुधि, प्रत्यंग, परहा और श्रुति।

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