संभल के हरिहर मंदिर का पूरा इतिहास

"पांच सदी से जमा रक्त जब शोले बनकर खौलेगा।
कब्र से उठकर बाबर भी तब हरिहर हरिहर बोलेगा।"

नहीं, ये मेरी रचना नहीं है बल्कि इसे रचने वाले हैं महंत ऋषिराज गिरी जी। ये वही व्यक्ति हैं जिन्होंने वर्तमान में संभल के हरिहर मंदिर के लिए कोर्ट में एक याचिका डाली है जिसका विरोध वहाँ के मुस्लिम समुदाय ने किया और भारी हिंसा हुई। इसीलिए ये आवश्यक है कि इस मंदिर का पूरा और सच्चा इतिहास जान लिया जाये। तो ये लेख उसी के विषय में है। लेकिन इससे पहले कि मैं इस लेख को आरम्भ करूँ, कुछ महत्वपूर्ण चीजें पहले ही बताना बहुत आवश्यक है।

सबसे पहली बात कि इस लेख में लिखी गयी हर बात प्रामाणिक है और उसके प्रमाण का सन्दर्भ उसी के साथ दिया गया है। दूसरी बात ये कि वो सारे प्रमाण सार्वजानिक हैं और अधिकतर इंटरनेट पर भी उपलब्ध हैं। तो यदि किसी कोई शंका हो कि इस लेख में बताई गयी कोई भी जानकारी गलत है तो वो उन सन्दर्भों को अपने स्तर पर जाँच सकते हैं। तीसरी और अंतिम बात, प्रमाणों का उल्लेख वर्तमान से अतीत की दिशा में है। अर्थात सबसे हाल-फ़िलहाल के प्रमाणों को सबसे पहले और सबसे पुराने प्रमाण को सबसे बाद में बताया गया है ताकि पाठक ये समझ सके कि इस स्थान पर मंदिर होने के प्रमाण हमारे पास कब से उपस्थित हैं। तो चलिए शुरू करते हैं।

हिन्दू धर्म में संभल का क्या महत्त्व है ये किसी को बताने की आवश्यकता नहीं। इस युग में अयोध्या और मथुरा के साथ-साथ जिस एक स्थान का धार्मिक रूप से बहुत अधिक महत्त्व है वो है संभल। उस विषय में बहुत अधिक विस्तार से बात नहीं करूँगा नहीं तो मंदिर का मुद्दा क्षीण हो जाएगा। इसीलिए संक्षेप में इस स्थान का महत्त्व बता देता हूँ।

हिन्दू मान्यता के अनुसार संभल वो स्थान है जहाँ कलियुग के अंत में भगवान विष्णु के १०वें अवतार भगवान कल्कि का जन्म होगा। अब आप स्वयं समझ लीजिये कि इस स्थान का कितना अधिक महत्त्व है। जिस प्रकार अयोध्या भगवान श्रीराम और मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान होने के कारण अति महत्वपूर्ण और पवित्र मानी जाती है, ठीक वही स्थान भगवान कल्कि के अवतरण का स्थान होने के कारण संभल का है।

मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण और श्रीमद् भागवत पुराण में संभल का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। यहाँ तक कि प्राचीन बौद्ध ग्रंथो में भी संभल का वर्णन दिया गया है। कुछ पुराणों के अनुसार संभल नगर की स्थापना नहुष पुत्र चक्रवर्ती महाराज ययाति के द्वारा की गयी थी। और जैसा कि हम जानते ही हैं कि हिन्दू धर्म में किसी भी नगर की स्थापना से पहले ही मंदिर का स्थान निश्चित किया जाता है, उसी प्रकार हरिहर मंदिर भी संभल से अभिन्न रूप से जुड़ा है। कुछ लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि इसी हरिहर मंदिर में भगवान कल्कि अवतरण लेंगे। इससे इस मंदिर का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

इस मंदिर का नाम हरि (भगवान विष्णु) और हर (भगवान शंकर) से मिलकर रखा गया है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में सर्वप्रथम हरि और हर अपने विग्रह रूप में एक साथ प्रकट हुए थे। तो इस प्रकार ये मंदिर नारायण और महादेव, दोनों से सम्बंधित होने के कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है। शैव और वैष्णव, दोनों सम्प्रदायों के लिए इसका महत्त्व बहुत ही अधिक है। कुछ लोग मानते हैं कि सबसे पहले इसका निर्माण महाराज ययाति ने करवाया था वहीँ कई लोग इसे स्वयंभू मंदिर भी मानते हैं।

अब विवाद इसी हरिहर मंदिर को लेकर है। जैसे अयोध्या, मथुरा और हजारों और मंदिरों को मुसलमान आक्रांताओं द्वारा तोड़ डाला गया, ठीक वैसा ही इसी मंदिर के साथ भी हुआ। और इस मंदिर को भी उसी आक्रांता ने तोडा जिसने अयोध्या के पवित्र राम मंदिर को तोडा था। अर्थात बाबर ने। ठीक अयोध्या की भांति ही इस मंदिर को भी बाबर ने तुड़वा कर उसके ऊपर मस्जिद बनवा दिया और आज युद्ध उसी मंदिर को वापस पाने का है। अयोध्या के श्रीराम मंदिर का पूरा इतिहास आप यहाँ देख सकते हैं।

वर्तमान का ये मस्जिद बाबर द्वारा मंदिरों को तोड़ कर बनवाये गए तीन मस्जिदों में से एक है। अन्य दो में से एक तो बाबरी मस्जिद थी जिसे १९९२ में ध्वस्त कर दिया गया था और दूसरी मस्जिद हरियाणा के पानीपत में स्थित काबुली बाग मस्जिद है। वैसे तो संभल के वर्तमान मस्जिद में जहाँ-तहाँ प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष आज भी दिख ही जाते हैं, किन्तु इसके अतिरिक्त भी हमारे पास ऐसे कई प्रमाण हैं जिससे ये सिद्ध होता है कि ये पहले एक मंदिर था जिसे तोड़ कर वहां जबरन मस्जिद बना दिया गया। आइये उनमें से कुछ मुख्य चीजों को देख लेते हैं। और जैसा कि मैंने इस लेख के आरम्भ में कहा, हम सबसे नजदीक के प्रमाण को पहले देखेंगे।

सन १९७६ में एक पुस्तक प्रकाशित हुई - History of Mughal Architecture जो श्री आर. नाथ (R. Nath) ने लिखी थी। इस पुस्तक के पहले खंड के पृष्ट संख्या १०३ और १०४ में संभल में मंदिर होने के बारे में बताया गया है।

इसमें लिखा गया है कि बाबर के शासनकाल में संभल, पानीपत, रोहतक, महम, सोनीपत, पालम, पिलखना, आगरा और अयोध्या में कई मस्जिद बनवाये गए। संभल के मस्जिद में तीन शिलालेख मिलते हैं जिनमें से एक में इसके निर्माण का और दो में इसके जीर्णोद्धार का उल्लेख है। इस मस्जिद को बाबर ने स्वयं नहीं बनाया बल्कि उसके आदेश पर इसे मीर हिन्दू बेग ने बनवाया था।


आर. नाथ आगे लिखते हैं - उन शिलालेखों के तीसरे बिंदु में लिखा गया है - "जब उन्होंने (बाबर) हिंदुस्तान में अपना शासन जमाया तो उसकी एक किरण से संभल इस मस्जिद द्वारा जगमगा उठा।" इसी के सातवें बिंदु में इस मस्जिद के निर्माण की तिथि लिखी गयी है जो है ६ दिसंबर १५२६।


इसके आगे वे लिखते हैं - "प्राचीन मंदिर के वो स्तम्भ आज भी इस मस्जिद के गलियारों में देखे जा सकते हैं।"


थोड़ा और पहले जाएँ तो कुछ ऐसा ही सन १९६३ में भारत की यात्रा पर आये इतिहासकार स्टीफन डेल (Stephen Dale) का मानना था। दक्षिण एशियाई इस्लाम के विद्वान और बाबर के जीवनीकार स्टीफन डेल ने लिखा है कि "मस्जिद का निर्माण उस स्थान पर किया गया था जो हिंदुओं के लिए पवित्र था और जिसके निर्माण में मंदिर की मिट्टी का इस्तेमाल किया गया था।"

चलिए थोड़ा और पीछे चलते हैं। सन १९११ में प्रकाशित मुरादाबाद गजेटियर (Moradabad Gazetteer) में भी इस स्थान पर मंदिर होने का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इस दस्तावेज की पृष्ठ संख्या २५७, २५८ और २५९ में संभल मंदिर के बारे में विस्तार से लिखा गया है। इसमें लिखा है -

"प्राचीन हिन्दू नगर संभल तोमर और चौहान (पृथ्वीराज चौहान) द्वारा संरक्षित था। जब मुसलमानों ने इसे जीता तो ये मुस्लिम ताकत का केंद्र बन गया। कुछ समय तक ये सिकंदर लोधी के साम्राज्य की राजधानी भी रहा। संभल निर्विवाद रूप से प्राचीन काल से हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थल था और (जहाँ पर वर्तमान मस्जिद है) वहाँ भगवान विष्णु का मंदिर था जिसे हरि मंदिर कहते थे।"


आगे लिखा है कि "वो मंदिर अब नहीं है और उसके स्थान पर मस्जिद बना दिया गया है।"


इसमें आगे लिखा है - "सन १८७४ में श्रीमान कार्लाइल (Mr. Carleylle) ने इस मस्जिद का निरिक्षण किया और उन्हें ये विश्वास हो गया कि इसका जो गुम्बद है वो हिन्दू वास्तुकला के आधार पर बनाया गया है। निरिक्षण के बाद वे इस निर्णय पर पहुंचे कि हाल फ़िलहाल के समय में ही इस मंदिर को तोड़ कर इसे मस्जिद में बदल दिया गया है।"


आगे लिखा गया है कि - "कार्ले के रिपोर्ट के आधार पर हिन्दुओं ने सिविल कोर्ट में मुकदमा किया पर अदालत ने इस दावे को निरस्त कर दिया। बावजूद इसके कि ये स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि मस्जिद को सन १५२६ में बाबर के आदेश पर हिन्दू बेग द्वारा बनवाया गया।"


आगे वे लिखते हैं कि - "ये बड़ी उत्सुकता की बात है कि मंदिर उस समय तक भी बना रहा जबकि संभल लम्बे समय से मुस्लिम गवर्नर का मुख्यालय रहा है। संभल मंदिर से मिलती जुलती घटना अयोध्या का जन्मस्थान मंदिर है जिसे बाबर के नाम पर (बाबरी मस्जिद) रख दिया गया।"


इसके आगे मुरादाबाद गजेटियर में लिखा गया है कि - "आइन-ए-अकबर" में भी संभल के इस मस्जिद को भगवान विष्णु का मंदिर कहा गया है। इसमें ये भी उल्लेखित है कि हरि मंदिर आज भी अस्तित्व में है।" १९६६ के गजेटियर में भी इस बात का जिक्र है कि संभल में हरिहर मंदिर है।


सन १८७८ में हिन्दुओं ने मुरादाबाद सिविल कोर्ट में याचिका डाली कि ये मस्जिद वास्तव में मंदिर को तोड़ कर बनाया गया है इसीलिए उसे वापस हिन्दुओं को लौटा देना चाहिए। पर कोर्ट ने फैसला हिन्दुओं के विरुद्ध सुनाया क्यूंकि वे ये सिद्ध नहीं कर सके कि पिछले लगातार १२ वर्षों से उस स्थान पर हिन्दुओं का कब्ज़ा है। किन्तु इस याचिका ने इस स्थान की जाँच भारतीय पुरातत्व विभाग से करवाने का रास्ता खोल दिया।

अब इससे थोड़ा और पीछे जाते हैं। सन १९०५ में कलकत्ता की Asiatic Society ने एक जर्नल प्रकाशित किया जिसका नाम था Proceedings of the Asiatic Society of Bengal। इस दस्तावेज के पृष्ट संख्या ९८ और ९९ में संभल के प्राचीन मंदिर का उल्लेख किया गया है।

इस जर्नल में सन १८७३ में उप-जिलाधीश रहे श्री गंगा प्रसाद के द्वारा कही गयी बात के बारे में बताया गया है जिसमें वे कहते हैं कि "ये स्थान वास्तव में हरि मंदिर था जिसे बाबर के आदेश पर मस्जिद में बदल दिया गया।" उन्होंने ये भी कहा कि मंदिर के घंटियों की जंजीरे और परिक्रमा का स्थल आज भी साफ़-साफ़ देखा जा सकता है।


इसमें आगे वे उन शिलालेखों का भी उल्लेख करते हैं जिनमें इस मस्जिद के निर्माण की तिथि और बाबर की प्रशंसा में कहे गए मीर हिन्दू बेग के शब्द हैं।


अब इससे थोड़ा और पीछे चलते हैं। संभवतः ये संभल में मस्जिद से पहले मंदिर होने का सबसे पुख्ता और विस्तृत प्रमाण है। सन १८७९ में Archibald Campbell Carlyle, जो उस समय भारतीय पुरातत्व विभाग (Archaeological Survey of India) के महानिदेशक (Director General) थे, उन्होंने एक रिपोर्ट निकाली जिसका नाम था Report of a Tours in the Central Doab and Gorakhpur in 1874-75 and 1875-76. इस रिपोर्ट के पृष्ट संख्या २४, २५, २६ और २७ में बहुत ही विस्तृत रूप से इस बात का वर्णन है कि संभल में स्थित मस्जिद वास्तव में एक मंदिर ही था।

इसमें कहा गया है - "सतयुग में संभल का नाम सबृत या सम्भलेश्वर था। त्रेतायुग में इसे महद्गिरि कहा जाने लगा। द्वापरयुग में इसका नाम पड़ा पिङ्गला और कलियुग में इसे संभल या संभल ग्राम के नाम से जाना जाता है।"


आगे लिखा है - "संभल में स्थित सबसे प्रमुख भवन जामी मस्जिद है और हिन्दू ये दावा करते हैं कि ये वास्तव में हरि मंदिर था।"


आगे बहुत विस्तार से ये रिपोर्ट कहती है - "मुस्लिम इसे बाबर का मस्जिद कहते हैं और शिलालेखों में ऐसा लिखा है पर हिन्दू पक्ष इसे गलत मानते हैं और कहते हैं कि ये बहुत बाद में बनाया और लिखा गया। हिन्दुओं के अनुसार ऐसे और कई प्राचीन शिलालेख हैं जो यहाँ मंदिर होने की बात प्रमाणित करते हैं।"

कार्लाइल इसके बाद एक बड़ी अद्भुत बात कहते हैं - "कई मुसलमानों ने ही मेरे सामने ये स्वीकार किया कि बाबर के नाम का शिलालेख सरासर जालसाजी है और इस स्थान पर सैनिक विद्रोह, अर्थात सन १८५७ तक मुस्लिमों का अधिकार था ही नहीं। सिर्फ २५ वर्ष पहले ही मुस्लिमों ने इस स्थान पर जबरन कब्ज़ा किया है। इस बात के लिए हिन्दुओं ने पहले भी मुकदमा किया किन्तु मुस्लिम बाहुल्य स्थान होने और हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने के कारण उसपर विचार नहीं किया गया।"


कार्लाइल के अनुसार इस शिलालेख पर बाबर का नाम ही गलत लिखा गया है। शिलालेख पर बाबर का नाम "शाह जमजाह मुहम्मद बाबर" लिखा गया है जबकि उसका असली नाम "शाह जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर" था।


आगे ASI की रिपोर्ट में लिखा है कि "मस्जिद के हिसाब से इसके गुम्बद की बनावट अजीब है। ऐसा कहा जाता है कि (इस मस्जिद से पहले) इस मंदिर का जीर्णोद्धार पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था जो संभल के संरक्षक थे। इस मंदिर को पत्थरों से बनाया गया था पर बाद में मुस्लिमों ने उसे छिपाने के लिए इसपर इसपर प्लास्टर चढ़ा दिया।"


आगे कार्लाइल बड़े विश्वास से कहते हैं - "मैंने देखा कि कई जगह से प्लास्टर उखड़ा हुआ है और उसके पीछे से पत्थर साफ दिखाई दे रहे हैं। मुझे विश्वास है कि मुसलमानों ने अधिकतर पत्थरों को घिस या तोड़ दिया है, विशेषकर उन पत्थरों को जिसपर हिन्दू चिह्न थे।"


आगे लिखा है - "मंदिर को मस्जिद में बदला गया और प्राचीन हिन्दू मंदिर और आधुनिक मुस्लिम मस्जिद के बीच का अंतर साफ़ पता चलता है। मूल मंदिर में पूर्व की ओर केवल एक ही द्वार था जो ८ फ़ीट ऊँचा था। बाद में मुस्लिमों ने ६-६ फ़ीट के चार और दरवाजे बनाये। दो उत्तर की दीवार पर और दो दक्षिण की दीवार पर ताकि उनके द्वारा बनाये गए गलियारों को उससे जोड़ा जा सके।"


आगे जनरल कनिंघम, जो कार्लाइल से पहले ASI के महानिदेशक थे, उन्होंने भी स्पष्ट लिखा है - "हिन्दुओं का ये दावा करना कि ये मस्जिद वास्तव में एक मंदिर था, मुझे बिलकुल ठीक लगता है।"


अंत में इस रिपोर्ट में फिर से लिखा गया है "इस मंदिर को मस्जिद में बदलने वाला मीर हिन्दू बेग था।"


थोड़ा और पीछे जाते हैं। सन १७८९ में थॉमस डैनियल (Thomas Daniell) और विलियम डैनियल (William Daniell) नाम के कलाकार भाइयों ने जामा मस्जिद का एक चित्र बनाया। इस चित्र को १९६९ में British Drawings in the India Office Library, Vol. 2: Official and Professional Artists के नाम से छपा गया। इस पुस्तक के पृष्ठ ५८० में ये चित्र है जहाँ इसे स्पष्ट रूप से हिन्दू मंदिर ही कहा गया है।




सन १७८० में अहमद अली, जो ईस्ट इंडिया कंपनी में एक मुंशी था, उसने संभल की यात्रा की और उसने भी पुष्टि की कि इस मस्जिद को मंदिर को तोड़ कर बनाया गया है।

चलिए इससे और थोड़ा पीछे चलते हैं। सन १७४५ में आनंद राम मुखलिस, जो एक कवि थे, उन्होंने संभल की यात्रा की। अपनी यात्राओं के संकलन को उन्होंने "आनंद राम सफरनामा" के नाम से लिपिबद्ध किया। इसके पृष्ठ ४८ में उन्होंने संभल में हर मंदिर होने का उल्लेख किया है।

साथ ही २००७ में Jerusalem Studies in Arabic and Islam में शोध करने वाले संजय सुब्रमण्यम ने अपने शोधपत्र Acculturation or tolerance? Inter-faith relations in Mughal North India में आनंद सफरनामा का वर्णन किया है जिसके पृष्ठ ४४५ और ४४६ में संभल में मंदिर होने का उल्लेख है।

इसमें आनद राम लिखते हैं - "मैंने अपने दल के साथ संभल की यात्रा की। वहाँ एक मंदिर हुआ करता था जिसका नाम था "हर मंडल"। वे सिखों की पवित्र पुस्तक दशम ग्रन्थ में लिखे एक दोहे का जिक्र करते हैं - "भाग बरे संभल के, के हरजी हर मंडल आवेंगे।"


इसका अर्थ ये है कि एक दिन हरजी अर्थात भोलेनाथ संभल में लौटेंगे जिससे संभल के भाग्य खुल जाएंगे। आनंद राम आगे लिखते हैं - "जब बाबर ने भारत पर कब्ज़ा किया, उसने संभल को जागीर के रूप में अपने बेटे हुमायूँ को दे दिया। फिर उसने इस मंदिर को मस्जिद में बदल दिया जो आज का जामी मस्जिद है। इस मस्जिद का जो गुम्बद है वो मंदिर की तरह दिखता है। हिन्दू बेग ने इस मस्जिद को बाबर के आदेश पर बनाया था। आज भी ब्राह्मण और फूल बेचने वाले इस मस्जिद के पास फूल बेचते और श्लोक पढ़ते दिख जाते हैं।"


तो अब तक तो आपको समझ में आ ही गया होगा कि संभल का जामा मस्जिद वास्तव में हरिहर मंदिर था, इसके हमारे पास अनेक प्रमाण हैं। अब मैं दो और प्रमाण दे देता हूँ जो स्वयं मुग़ल काल के दो सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में ही वर्णित है। ये दो पुस्तकें हैं अकबर की आज्ञा से अबुल फजल द्वारा लिखी गयी "आइन-ए-अकबरी" और बाबर द्वारा लिखी गयी "बाबरनामा"। मतलब वो मस्जिद वास्तव में मंदिर था, इसे अकबर और स्वयं बाबर ने माना है।

सन १५९० में अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने अकबर के कहने पर "आइन-ए-अकबरी" नाम की पुस्तक लिखी जिसमें अकबर की राज्य व्यवस्था की जानकारी थी। इसका अनुवाद कलकत्ता की Royal Asiatic Society ने १९४९ में किया।

इसके खंड २ के पृष्ठ संख्या २८५ में लिखा है - "संभल में एक मंदिर है जो हरि मंडल के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु का ये मंदिर एक ब्राह्मण से सम्बंधित है जिसके वंश में दसवां अवतार इसी स्थान पर प्रकट होगा।"


इससे भी पहले बाबर ने सन १४९४ से १५३० के बीच अपनी जीवनी लिखी जो बाबरनामा कहलाया। इसका अनुवाद Annette Susannah Beveridge ने १९२२ में किया। इस पुस्तक प्रथम खंड के पृष्ठ ६८७ में लिखा है कि बाबर ने हिन्दू बेग को ९ जुलाई और अब्दुल्लाह को १० जुलाई को संभल भेजा।


उसी हिन्दू बेग ने बाबर के आदेश पर ९३३ हिजरी सम्वत (सन १५२६) में हरिहर मंदिर तोड़ कर मस्जिद बना दी।


आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मंदिर के विरुद्ध कुछ पाप हाल-फ़िलहाल के समय में भी किये गए हैं। और वो किसी बाबर ने नहीं बल्कि हमारी अपनी राजनितिक पार्टियों ने किये हैं। इस मंदिर में १९ कुँए थे जिसके जल को हिन्दू पवित्र मानते थे। साथ ही हर दीपावली के दिन यहाँ हिन्दू दीप जलाने भी आते थे। लेकिन २०१२ में तत्कालीन समाजवादी सरकार ने इन सभी कुओं को कंक्रीट से भर दिया और हिन्दू श्रद्धालुओं के दीपों को फेंका जाने लगा जिससे उनका दीपावली पर वहां आना धीरे-धीरे बंद हो गया।

अब तक आप लोगों को इस मंदिर का इतिहास समझ में आ गया होगा। अब कई लोगों के मन में ये प्रश्न होगा कि अब अचानक क्या हुआ कि ये मुद्दा इतना गरमा गया? तो इस लेख के आरम्भ में महंत ऋषिराज गिरी जी की वो रचना याद कीजिये। ऋषिराज गिरी जी सदा से ये दावा करते आ रहे हैं कि उनके पास इस मंदिर के लगभग हजार वर्ष पुराने नक़्शे हैं। इन नक्शों में संभल के ६८ तीर्थ और १९ कुओं के चित्र हैं।





इसी कारण उन्होंने कोर्ट में एक याचिका डाली और उनकी ओर से वकील बने श्री हरिशंकर जैन और श्री विष्णु जैन। यदि आप श्रीराम मंदिर के संघर्ष के बारे में जानते हैं तो इन पिता-पुत्र के विषय में भी अवश्य जानते होंगे। ये दोनों हीं श्रीराम जन्मभूमि केस में हिन्दू पक्ष के वकील थे। नवंबर २०२४ में इनकी याचिका पर कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व विभाग को इस स्थल की जाँच करने को कहा। यहाँ एक बात बताना आवश्यक है कि सन १९२० में इस मस्जिद को Ancient Monuments Preservation Act 1904 के तहत एक संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया था और इसका स्वामित्व भारतीय पुरातत्व विभाग को दे दिया गया।

भारतीय पुरातत्व विभाग ने आरम्भिक जाँच के बाद कोर्ट को ये बताया कि इस मस्जिद के अंदर मस्जिद कमिटी ने अवैद्य निर्माण किया है। इसकी जाँच हुई और कमिटी के १३ सदस्य इसमें दोषी पाए गए। भारतीय पुरातत्व विभाग ने ये भी कहा कि जब ये एक संरक्षित स्थल है और Ancient Monuments Preservation Act 1904 के तहत इसका स्वामित्व ASI के पास है तो मस्जिद कमिटी आयी कहाँ से और किसकी अनुमति से ये निर्माण किया गया? ASI की ओर से ये शिकायत भी की गयी कि जाँच के वक्त उनके कर्मचारियों को मस्जिद कमिटी और स्थानीय लोगों ने भगा दिया।

२४ नवम्बर २०२४ को जब ASI की टीम दुबारा सर्वेक्षण को गयी और मस्जिद के वजूखाने से पानी को निकाला गया तो इस बात को लेकर बवाल हो गया और सुनियोजित तरीके से दंगे भड़काए गए। इससे पांच लोगों की मृत्यु हो गयी और २० से अधिक सुरक्षाकर्मी घायल हो गए।

प्रशासन ने संभल मंदिर के निकट २८ ट्राली पत्थर बरामद किये। दंगो को नियंत्रित करने के बाद अब तक २५ से अधिक लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है और २५०० से अधिक व्यक्तियों के विरुद्ध केस फाइल किया गया है। इनमें समाजवादी पार्टी के संभल के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क और उनके पुत्र इक़बाल महमूद भी शामिल हैं।

हालाँकि संभल में दंगे की ये पहली घटना नहीं है। २९ मार्च १९७८ को एक अफवाह उड़ाई गयी कि हिन्दुओं ने वहां के स्थानीय इमाम की हत्या कर दी है। इससे दंगे भड़क गए जिसमें १६ लोगों की जान चली गयी। बाद में पाया गया कि ये अफवाह बिलकुल झूठी थी।



ये मामला अब उच्चतम न्यायलय में जा चुका है और उनके आदेश के अनुसार अभी इलाहबाद उच्च न्यायलय इसकी जाँच कर रहा है। हमारी तो यही आशा है कि जिस प्रकार सदियों के संघर्ष के बाद अयोध्या का राम मंदिर हिन्दुओं को वापस मिला, उसी प्रकार भगवान कल्कि की जन्मभूमि संभल का ये हरिहर मंदिर भी हमें शीघ्र प्राप्त हो। जय श्रीहरि।

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