अधिकतर लोगों को ये पता है कि महाभारत में कुल १८ पर्व और १००००० श्लोक हैं। जनमानस में भी यही जानकारी उपलब्ध है किन्तु बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि वास्तव में महर्षि वेदव्यास ने बहुत ही वृहद् महाभारत की रचना की थी। इतना वृहद् जिसकी हम लोग कदाचित कल्पना भी नहीं कर सकते। इसका वर्णन हमें महाभारत के प्रथम और द्वितीय अध्याय में मिलता है।
जब हनुमान जी ने अपने सामर्थ्य का वर्णन किया
ये तो हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी को अपनी शक्ति को भूल जाने के श्राप था। इसी कारण जब वानर सेना समुद्र के किनारे खड़ी हो उस पर जाने की योजना बना रही थी तो विभिन्न वानरों ने अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार समुद्र पार करने की बात की। उनमें से किसने कितनी दूर जाने की बात की, इसके बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
जटायु का पराक्रम
अरुण के पुत्र और सम्पाती के छोटे भाई जटायु के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं। हम ये भी जानते हैं कि किस प्रकार जटायु ने रावण से माता सीता की रक्षा करने का प्रयत्न किया था। अधिकतर लोग बस यही जानते हैं कि माता सीता की रक्षा की प्रक्रिया में रावण द्वारा जटायु का वध हो गया था किन्तु बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि उस युद्ध में जटायु ने अद्वितीय पराक्रम दिखाया और रावण जैसे महापराक्रमी को भी पृथ्वी पर उतरने के लिए विवश कर दिया था।
रामायण के अनुसार श्रीराम का वंश
कुछ समय पहले हमने श्रीराम के वंश के बारे में एक वीडियो प्रकाशित किया था। किन्तु यदि आप वाल्मीकि रामायण पढ़ेंगे तो आपको उनके वंश का एक अलग वर्णन मिलता है। ये थोड़ा अजीब इसीलिए है क्यूंकि कुछ चंद्रवंशी राजाओं का वर्णन भी इसमें किया गया है जबकि श्रीराम सूर्यवंशी थे। साथ ही महाभारत में उन चंद्रवंशी राजाओं का क्रम ब्रह्माजी से नजदीक है जबकि रामायण में ये बहुत बाद का बताया गया है।
क्या रामायण में श्रवण कुमार का कोई वर्णन है?
श्रवण कुमार की कथा से भला कौन परिचित नहीं है। आधुनिक काल में वो एक कर्तव्यनिष्ठ पुत्र के एक ऐसे उदाहरण हैं जिनके जैसा बनना हर संतान का एक स्वप्न होता है। हम ये भी जानते हैं कि श्रवण कुमार की कथा श्रीराम के पिता महाराज दशरथ से जुडी हुई है। किन्तु क्या वाल्मीकि रामायण में श्रवण कुमार नाम के किसी चरित्र का वर्णन दिया गया है? तो इसका उत्तर है नहीं। रामायण में किसी श्रवण कुमार का वर्णन हमें नहीं मिलता।
समुद्र लंघन के समय किस वानर ने कितनी दूर जाने की बात कही थी?
माता सीता की खोज में वानरों का समुद्र तट पर पहुंचना और उसके बाद हनुमान जी द्वारा समुद्र लांघने की बात तो हम सभी जानते ही है। पर एक बात जो अधिक लोग नहीं जानते वो ये कि समुद्र लांघने की चर्चा करते हुए कई वानरों ने अपनी शक्ति के अनुसार, कितनी दूर वे जा सकते हैं, इसका उल्लेख किया था। उस चर्चा में तो हनुमान जी ने कुछ कहा ही नहीं था क्यूंकि श्राप के कारण उन्हें अपने बल का ज्ञान नहीं था। बाद में जामवंत जी ने उन्हें प्रेरित किया।
कबंध
कबंध रामायण कालीन एक बहुत ही शक्तिशाली राक्षस था। हालाँकि आम मान्यता है कि रामायण काल के सारे राक्षस रावण के अधीन थे किन्तु वाल्मीकि रामायण में कबंध के बारे में ऐसा कुछ नहीं लिखा गया है। तो आप उसे अपने विवेक के अनुसार रावण के अधीन अथवा एक स्वाधीन राक्षस मान सकते हैं। कबंध की कथा हमें वाल्मीकि रामायण के अरण्य कांड के ६९वें सर्ग में मिलता है, जो सर्ग ७३ में जाकर समाप्त होती है।
वेद, संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद क्या हैं?
वेदों के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं। इसकी मूल संरचना के विषय में भी हम जानते हैं कि वेदों को मूलतः ४ भागों में विभक्त किया गया है - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। किन्तु इसके अतिरिक्त भी हमें कई और चीजों के बारे में सुनने को मिलता है जैसे संहिता, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक ग्रन्थ, उपनिषद इत्यादि जिसे अधिकतर लोग ठीक से समझ नहीं पाते हैं। ये हिन्दू धर्म के सबसे जटिल चीजों में से एक हैं।
क्या श्रीराम ने कभी माता शबरी के जूठे बेर खाये थे?
रामायण के सन्दर्भ में शबरी और उनके जूठे बेरों के विषय में तो सब जानते हैं। सदियों से हम ये सुनते आ रहे हैं कि जब श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता को ढूंढते हुए माता शबरी के आश्रम में पहुंचे तो उन्हें देख कर शबरी, जो वर्षों से उनकी प्रतीक्षा कर रही थी बड़ी प्रसन्न हुई। फिर उन्होंने दोनों भाइयों को खाने के लिए बेर दिए। बेर अच्छे हैं या नहीं इसीलिए उन्होंने उसे पहले उसे चखा। बाद में उसी बेर को श्रीराम और लक्ष्मण ने प्रेम से खाया।
अयोमुखी - एक और राक्षसी जिसके नाक-कान लक्ष्मण ने काट डाले
शूर्पणखा की कथा तो हम सभी जानते ही हैं। रामायण के अरण्य कांड के १८वें सर्ग में इसका वर्णन है कि जब शूर्पणखा श्रीराम के समझाने पर भी नहीं मानी और माता सीता पर आक्रमण किया, तब लक्ष्मण ने श्रीराम की आज्ञा से उसके नाक और कान काट डाले। किन्तु क्या आपको पता है कि रामायण में ही एक और ऐसी राक्षसी का वर्णन आता है जिसके नाक कान लक्ष्मण ने काट डाले थे?
विश्वकर्मा
कदाचित ही संसार में कोई ऐसा होगा जो देव विश्वकर्मा के नाम से परिचित नहीं होगा। यदि रचना की बात की जाये तो परमपिता ब्रह्मा के बाद यदि कोई नाम है तो वो विश्वकर्मा ही हैं। अन्य देवताओं से उलट, विश्वकर्मा जी का वर्णन लगभग हर पुराणों में हमें कहीं ना कहीं मिलता है। यहाँ तक कि वैदिक ग्रंथों, विशेषकर ऋग्वेद में उनका विस्तृत वर्णन किया गया है।
श्रीराम और माता सीता की आयु कितनी थी?
कुछ समय पहले हमने रावण की आयु पर एक लेख और वीडियो प्रकाशित किया था। जैसा कि हमने उसमें देखा कि मूल वाल्मीकि रामायण में हमें रावण की आयु के विषय में कुछ स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता। हालाँकि यदि बात श्रीराम और माता सीता की आयु की की जाये तो रामायण में हमें इस विषय में कई सन्दर्भ मिलते हैं।
ऋषि जाबालि
कुछ समय पहले हमने चार्वाक दर्शन पर एक लेख प्रकाशित किया था जो पूर्ण रूप से नास्तिक विचारधारा पर आधारित है। किन्तु यदि हम रामायण का अध्ययन करते हैं तो हमें पता चलता है कि नास्तिक विचारधारा आज की नहीं अपितु बहुत पहले से चली आ रही है। आधुनिक काल में उसके प्रवर्तक चार्वाक माने जाते हैं किन्तु उनसे बहुत पहले रामायण में भी एक ऋषि थे जिनकी विचारधारा घोर नास्तिक मानी जाती है।
जब माता पार्वती ने देवताओं को निःसंतान रहने का श्राप दिया
बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि देवताओं के कोई भी पुत्र अपनी माता के गर्भ से नहीं जन्में हैं। ऐसा इसलिए क्यूंकि देवताओं को ये श्राप स्वयं भगवती पार्वती ने दिया था। इसका वर्णन शिव पुराण के अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के ३६वें सर्ग में मिलता है जहाँ महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को माता गंगा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में ये कथा सुनाते हैं।
क्या वास्तव में लक्ष्मण ने लक्ष्मण रेखा खींची थी?
आप सभी लोग सोच रहे होंगे कि मैं ये कैसी बातें कर रहा हूँ? सदियों से हम लक्ष्मण रेखा के विषय में सुनते आ रहे हैं। सभी लोग ये जानते हैं कि जब श्रीराम स्वर्णमृग रूपी मारीच के पीछे चले गए और उसका वध किया तब उसने श्रीराम के स्वर में माता सीता और लक्ष्मण को पुकारा। तब माता सीता के बहुत कहने पर लक्ष्मण जी श्रीराम की सहायता के लिए गए लेकिन जाने से पहले माता सीता की रक्षा के लिए एक ऐसी रेखा खींच गए जिसे कोई पार ना कर सके। वही रेखा "लक्ष्मण रेखा" के रूप में प्रसिद्ध है।
महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम और लक्ष्मण को कौन-कौन से अस्त्र दिए थे?
रामायण में जब महर्षि विश्वामित्र महाराज दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को मांग कर ले जाते हैं तो ताड़का वध से पहले और उसके बाद वे दोनों भाइयों कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और विद्याएं प्रदान करते हैं। इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के २२वें और २७वें सर्ग में दिया गया है। आइये उन सभी के बारे में जानते हैं:
ताड़का
ताड़का रामायण में वर्णित एक राक्षसी थी जिसका वर्णन हमें रामायण के बालकाण्ड के २४वें सर्ग में मिलता है। जब महर्षि विश्वामित्र महाराज दशरथ से अपने यज्ञ की रक्षा हेतु श्रीराम और लक्ष्मण को मांग कर ले गए, तब मार्ग में यज्ञ से पहले ताड़का राक्षसी का सन्दर्भ आता है। ताड़का वास्तव में एक यक्षिणी थी जिसे राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप मिला था।
रामायण में कौन किसका अवतार था?
ये तो हम सभी जानते ही हैं कि रामायण में भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अपना सातवां अवतार लिया था। किन्तु उस युग में उनकी सहायता के लिए अनेकों देवताओं ने अवतार लिए। इसका विस्तृत वर्णन वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के सर्ग १७ और युद्धकाण्ड के सर्ग ३० में मिलता है। इसके अतिरिक्त रामचरितमानस में भी हमें कुछ वर्णन मिलता है। कुछ ऐसे अवतार भी हैं जो लोक कथाओं के रूप में प्रचलित हैं, उसका अलग से वर्णन किया गया है।
जब रावण माता सीता का अपहरण किये बिना ही लौट गया
रामायण में सीता हरण के विषय में जनमानस में एक धारणा प्रचलित है कि रावण ने शूर्पणखा के कहने पर मारीच की सहायता से माता सीता का हरण किया था। किन्तु वास्तव में खर-दूषण और जनस्थान के १४००० राक्षसों के नाश का समाचार सबसे पहले शूर्पणखा ने रावण को नहीं दिया था। ना ही सबसे पहले शूर्पणखा ने रावण को सीता हरण की सलाह दी थी। साथ ही साथ पहली बार रावण मारीच की बात मान कर माता सीता का हरण किये बिना ही लौट गया था, ये बात बहुत ही कम लोगों को पता है।
क्या श्रीराम ने खर-दूषण को बड़ी सरलता से मार डाला था?
भगवान श्रीराम और खर-दूषण के युद्ध के विषय में तो हम सभी जानते हैं। आम तौर पर इस युद्ध के विषय में विस्तार से बहुत कम लोगों को पता है और ऐसी मान्यता है कि ये युद्ध श्रीराम ने बड़ी आसानी से बहुत कम समय में जीत लिया। किन्तु जब हम वाल्मीकि रामायण पढ़ते हैं तो इस युद्ध के विषय में बहुत विस्तार से लिखा गया है। इसका वर्णन हमें अरण्य कांड के २५वें सर्ग से लेकर ३०वें सर्ग तक दिया गया है। जब आप इसे पढ़ेंगे तो आपको श्रीराम के शौर्य के विषय में पता चलेगा।
अद्भुत रामायण - एक अजीब रामायण
वैसे तो वाल्मीकि रामायण के कई संस्करण हैं जिनमें से सबसे प्रमुख है गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस। इसके अतिरिक्त भी आनंद रामायण, कम्ब रामायण, अध्यात्म रामायण आदि अनेक संस्करण हैं। इन्ही संस्करणों में से जो सबसे अलग संस्करण है वो है अद्भुत रामायण। जैसा कि इसका नाम है, इस रामायण में ऐसी ऐसी अद्भुत घटनाएं हैं जिसपर विश्वास करना बहुत कठिन है।
महर्षि रुरु और प्रमद्वरा की कथा
आज वट सावित्री का पर्व है। सावित्री के पात्रिव्रत के विषय में हमने एक लेख पहले ही प्रकाशित किया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। सावित्री और उन जैसे अनेकों पतिव्रताओं की कथा से हमारे ग्रन्थ भरे पड़े हैं पर आज हम आपको एक ऐसे पुरुष की कथा सुनाते हैं जिन्होंने अपने मृत पत्नी के प्राण यमराज की कृपा से वापस प्राप्त किये।
भरत किस मार्ग से अयोध्या से कैकेय गए और किस मार्ग से वापस आये?
ये तो हम सभी जानते हैं कि रामायण में श्रीराम के राज्याभिषेक से पहले ही भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय देश चले गए थे। बाद में जब महाराज दशरथ की मृत्यु हुई तो गुरु वशिष्ठ ने दूतों को कैकेय देश भेजा ताकि वे भरत और शत्रुघ्न को वापस ले कर आ सकें। जिस मार्ग से दूत कैकेय पहुंचे और जिस मार्ग से भरत और शत्रुघ्न सेना सहित वापस आये, उसका विस्तृत वर्णन रामायण में दिया गया है।
श्रीराम द्वारा किया गया अद्भुत दान
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में जब श्रीराम के वनवास जाने का प्रसग आता है तो वन जाने से पहले वो पाना समस्त व्यक्तिगत धन ब्राह्मणों और अन्य जनता में बाँट देते हैं। यहाँ पर श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं कि "हे लक्ष्मण! मेरा ये जो धन है इसे मैं तुम्हारे साथ रहकर तपस्वी ब्राह्मणों में बाँटना चाहता हूँ। इसलिए जो भी श्रेष्ठ ब्राह्मण यहाँ हैं, उनको तथा उनके आश्रितों को मेरे पास लेकर आओ।
कांजीरोट्टु यक्षिणी
कुछ समय पहले हमने यक्षिणियों एवं पद्मनाभ स्वामी मंदिर के रहस्य पर एक लेख प्रकाशित किया था। इन दोनों में हमने कांजीरोट्टू नामक एक यक्षिणी के विषय में बताया था। इस यक्षिणी की मान्यता दक्षिण भारत, विशेषकर केरल और तमिलनाडु में बहुत है और वहाँ इसकी कई लोक कथाएं भी प्रचलित हैं।
महर्षि भरद्वाज द्वारा भरत और उनकी सेना का दिव्य सत्कार
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के ९१वें सर्ग में एक प्रसंग आता है जब भरत अपनी सेना सहित श्रीराम को वापस बुलाने वन को निकलते हैं तो उनकी भेंट महर्षि भरद्वाज से होती है। तब भरत एक रात्रि के लिए अपनी सेना सहित महर्षि के आश्रम में ही रुकते हैं। उस समय भरद्वाज मुनि द्वारा उनके और उनकी सेना के दिव्य सत्कार का वर्णन है जो अद्भुत है। ये इस बात का उदाहरण है कि तप की शक्ति कितनी प्रबल हो सकती है।
रावण कितना शक्तिशाली था?
रामायण के अरण्य कांड के ३३वें सर्ग में हमें शूर्पणखा और रावण के साक्षात्कार का वर्णन आता है और इसी सर्ग में महर्षि वाल्मीकि ने संक्षेप में रावण के बल के विषय में बताया है। जब श्रीराम ने जनस्थान में खर और दूषण का वध कर दिया तब शूर्पणखा रावण से मिलने लंकापुरी में गयी। यहीं पर रावण के व्यक्तित्व और बल का वर्णन है:
क्या श्रीराम मांसाहारी थे?
पिछले कई वर्षों से विधर्मियों और वामपंथियों द्वारा रामायण और श्रीराम की छवि धूमिल करने का अनेकों बार प्रयास किया गया है। अभी हाल के ही समय में एक अलग ही विषय पर ये लोग फिर से कुतर्क दे रहे हैं। वो विषय है श्रीराम द्वारा मांसाहार का। कई लोगों ने वाल्मीकि रामायण के कुछ श्लोकों का भी उद्धरण दिया है और ये सिद्ध करने का प्रयास किया है कि श्रीराम मांसाहारी थे। ऐसा ही कुछ एक तमिल फिल्म "अन्नपूर्णी" में भी सिद्ध करने का प्रयास किया गया।
श्रीराम के अनुसार श्रेष्ठ राजा कैसा होना चाहिए
श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि उनसे महान राजा आज तक और कोई नहीं हुआ। राजनीति के सभी मर्मों का ज्ञान श्रीराम को था। रामायण में एक ऐसा प्रसंग आता है जब श्रीराम, एक श्रेष्ठ राजा कैसा हो, इसके बारे में बताते हैं। रामायण के अयोध्या कांड के १००वें सर्ग में श्रीराम और भरत का संवाद है जिसमें श्रीराम उन्हें राजनीति की शिक्षा देते हैं।
क्या भगवान शंकर वास्तव में नशा करते हैं?
वैसे तो हिन्दू धर्म में असंख्य मिथ्या धारणाएं प्रचलित हैं किन्तु जो मिथ्या बात सबसे अधिक प्रचलित है वो है भगवान शंकर द्वारा भांग और नशे का सेवन करना। आज भी आपको इंटरनेट पर ऐसे अनेकों चित्र मिल जाएंगे जिसमें भोलेनाथ को भांग या गांजे का सेवन करता हुआ दिखाया गया है। जो स्वयं को शिव भक्त कहते हैं उन्हें इसपर को आपत्ति नहीं होती किन्तु सत्य यह है कि महादेव को इस रूप में दिखा कर आप उनका घोर अपमान करते हैं।
कैसी थी द्वारिका नगरी और क्यों डूब गयी समुद्र में? - द्वारिका नगरी का पूरा इतिहास
चार धाम और सप्त पुरियों में से एक द्वारिका। जिस प्रकार अयोध्या को श्रीराम ने अपने चरणों से पावन किया ठीक उसी प्रकार द्वारिका श्रीकृष्ण की नगरी होने के कारण धन्य हुई। हालाँकि अयोध्या से उलट द्वारिका नगरी बहुत ही रहस्य्मयी मानी जाती है। कहा जाता है कि हर कल्प में जब भी कृष्णावतार होता है, समुद्र द्वारिका नगरी की भूमि प्रदान करने के लिए पीछे हटता है और उनके निर्वाण के साथ ही समुद्र वो भूमि वापस ले लेता है। यही कारण है कि आज भी द्वारिका जलमग्न है। आज इस लेख में हम श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका के विषय में जानेंगे।
क्या वास्तव में देवराज इंद्र ने माता सीता को दिव्य खीर दी थी?
रामायण के विषय में हमें एक कथा ऐसी मिलती है जहाँ देवराज इंद्र द्वारा माता सीता को दिव्य खीर दी गयी थी जिसे खाने के बाद माता सीता कभी भूख नहीं लगे और उन्हें रावण के अन्न को खाने की आवश्यकता ना पड़े। हालाँकि सबसे पहले ये बताना आवश्यक है कि इस कथा को प्रक्षिप्त माना जाता है, अर्थात ये प्रसंग वाल्मीकि रामायण का भाग नहीं है बल्कि इसे बाद में जोड़ा गया।
माण्डकर्णि मुनि
माण्डकर्णि मुनि का वर्णन वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड के ११ सर्ग में दिया गया है। अरण्यकाण्ड के ८वें सर्ग में श्रीराम सुतीक्ष्ण मुनि से विदा लेकर आगे बढ़ते हैं। मार्ग दिखाने के लिए सुतीक्ष्ण मुनि के एक शिष्य ऋषि धर्मभृत भी उनके साथ होते हैं। उसी मार्ग में ऋषि धर्मभृत श्रीराम, माता सीता और वीरवर लक्ष्मण को माण्डकर्णि मुनि की कथा सुनाते हैं।
जब देवर्षि नारद ने श्रीहरि को श्राप दिया
ये तो हम सभी जानते हैं कि ब्रह्मपुत्र देवर्षि नारद श्रीहरि के सबसे बड़े भक्तों में से एक हैं। किन्तु श्री रामचरितमानस के बालकाण्ड में हमें एक ऐसा प्रसंग मिलता है जब देवर्षि नारद ने श्रीहरि को श्राप दे दिया। मानस में ये कथा भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी और तब माता ने बड़े आश्चर्य से पूछा कि नारायण के सबसे बड़े भक्त नारद जी ने अपने ही स्वामी को किस प्रकार श्राप दे दिया।
जटायु के अनुसार समस्त प्रजापतियों और कश्यप ऋषि से उत्पन्न सभी जातियों का वर्णन
कुछ समय पहले हमने महर्षि कश्यप द्वारा समस्त जातियों के वर्णन के बारे में एक वीडियो प्रकाशित क्या था। उसमें हमें ज्ञात हुआ कि महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १३ (कहीं-कहीं १७) कन्याओं से विवाह किया जिससे समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। रामायण में भी हमें सभी प्रजापतियों और जातियों की उत्पत्ति के बारे में विस्तृत सन्दर्भ मिलता है, हालाँकि वहां वर्णन पुराणों से थोड़ा अलग है।
श्रीराम मंदिर का सम्पूर्ण इतिहास
श्रीराम के विषय में कौन नहीं जनता? उनके और उनके वंश के विषय में बताने की कोई आवश्यकता नहीं। ये जो वर्ष है वो बहुत ही महत्वपूर्ण है क्यूंकि इसी वर्ष अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। विगत कुछ वर्षों में हम सभी ने श्रीराम जन्मभूमि और इस मंदिर के आधुनिक इतिहास के बारे में कुछ पढ़ा और सुना है। आज इस लेख में हम इस मंदिर के प्राचीन इतिहास से लेकर वर्तमान स्थिति को जानेंगे।
गीता कुल कितनी है?
जब भी श्रीमदभगवद्गीता की बात आती है तो हम सभी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य ज्ञान का ही ध्यान आता है। निःसंदेह भगवद्गीता सर्वाधिक प्रसिद्ध है किन्तु आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पुराणों में और भी कई गूढ़ ज्ञान का वर्णन है जिन्हे गीता कहा गया है। वैसे तो लगभग ३०० गीताओं का वर्णन मिलता है किन्तु इस लेख में मुख्य गीताओं के विषय में बताया जा रहा है:
सदस्यता लें
संदेश (Atom)