हम सभी परीक्षित पुत्र जन्मेजय द्वारा किये गए सर्पयज्ञ के विषय में जानते ही हैं। सर्पयज्ञ और उसके इतिहास के विषय में विस्तृत लेख हम कभी और प्रकाशित करेंगे। इस लेख में हम उस सर्पयज्ञ में भस्म हुए मुख्य-मुख्य नागों के विषय में जानेंगे। इन सभी नागों का वर्णन महाभारत के आदि पर्व के अंतर्गत सर्पनामकथनविषयक पर्व में दिया गया है।
इस कथा में जब महर्षियों की सभा चल रही थी तब वहां शौनक जी ने सूत जी से पूछा था कि ऋषि आस्तीक द्वारा जन्मेजय के सर्पयज्ञ को रुकवाए जाने से पहले कौन-कौन से नाग उस यज्ञ कुंड की अग्नि में जलकर भस्म हो गए थे? इसपर सूत जी ने कहा था कि इस यज्ञ में अरबों सर्प गिरे थे इसीलिए उनकी गणना नहीं की जा सकती। किन्तु उस यज्ञ में भस्म हुए प्रधान सर्पों के नाम मुझे याद हैं जो मैं तुम्हे बता रहा हूँ।
- सबसे पहले सूत जी ने सबसे पहले वासुकि कुल के मुख्य नागों के नाम बताये। वे थे - कोटिश, मानस, पूर्ण, शल, पाल, हलीमक, पिच्छल, कौणप, चक्र, कालवेग, प्राकलन, हिरण्यबाहु, शरण, कक्षक और कालदंतक।
- इसके बाद सूत जी ने तक्षक कुल के नागों के नाम बताये। वे थे - पुच्छाण्डक, मण्डलक, पिण्डसेक्ता, रभेणक, उच्छिख, शरभ, भंग, बिल्वतेजा, विरोहण, शिली, शलकर, मूक, सुकुमार, प्रवेपन, मुगदर, शिशुरोमा, सुरोमा और महाहनु।
- आगे सूत जी ने ऐरावत कुल के नागों के नाम बताये। वे थे - पारावत, पारिजात, पाण्डर, हरिण, कृश, विहंग, शरभ, मेद, प्रमोद और संहतापन।
- इसके बाद उन्होंने कौरव्य कुल के नागों के नाम बताये। वे थे - एरक, कुण्डल, वेणी, वेनिस्कंध, कुमारक, बाहुक, शृंगवेर, धूर्तक, प्रातर एवं आतक।
- आगे उन्होंने धृतराष्ट्र कुल में उत्पन्न नागों के विषय में बताया जो यज्ञ में भस्म हो गए थे। वे थे - शंकुकर्ण, पिठरक, कुठार, मुखसेचक, पुर्णङ्गद, पूर्णमुख, प्रहास, शकुनि, दरि, अमाहठ, कामठक, सुषेण, मानस, अव्यय, भैरव, मुण्डवेदांग, पिशंग, उद्रपारक, ऋषभ, वेगवान, पिण्डारक, महाहनु, रक्तांग, सर्वसारंग, समृद्ध, पटवासक, वराहक, वीरणक, सुचित्र, चित्रवेगिक, पराशर, तरुणक, मणि, स्कंध एवं आरुणि।
इस वर्णन को समाप्त करने के बाद सूत जी कहते हैं कि सभी नाग जो उस सर्पयज्ञ में जल कर भस्म हो गए उनकी गिनती इतनी अधिक है कि उन सबका वर्णन नहीं किया जा सकता। कोई तीन सर वाले थे, कोई सात तो कई दस सर वाले नाग थे। उनके विष प्रलयाग्नि के समान थे। कई नाग बहुत ही विशाल थे और इतने ऊँचे थे जैसे कोई पर्वत शिखर हों। किसी-किसी नाग की लम्बाई एक और दो योजन तक भी थी। किन्तु अपनी माता के श्राप के कारण वो सभी मृत्यु को प्राप्त हुए।
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