कितनी भव्य थी रावण की लंका?

कितनी भव्य थी रावण की लंका?
लंका की भव्यता के विषय में हम सभी ने सुना है। विशेषकर वाल्मीकि रामायण में इसके विषय में बहुत विस्तार से लिखा गया है। रामायण के सुन्दर कांड के चौथे सर्ग में हमें लंका के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है जब महाबली हनुमान माता सीता को खोजने के लिए लंकिनी को परास्त कर लंका में प्रवेश करते हैं। वहां हनुमान जी ने लंका को जैसा देखा उससे हमें उसकी भव्यता और रावण के ऐश्वर्य का पता चलता है। उसी का संक्षेप में वर्णन हम इस लेख में करने वाले हैं।

रामायण के अनुसार जब हनुमानजी ने लंका में प्रवेश किया तो उन्होंने देखा वो नगरी अद्वितीय थी। वहां के घर विशाल थे और उनके झरोखे हीरों के बने थे। उन घरों से मधुर गीतों की ध्वनि आ रही थी। वहां की स्त्रियां अप्सराओं की भांति सुन्दर थी। हनुमान जी ने कई घरों में राक्षसों को मन्त्र जपते और स्वाध्याय में लग्न देखा। रावण की जयजयकार करती हुई एक भीड़ को भी उन्होंने राजमार्ग में देखा।

हनुमानजी ने रावण के गुप्तचर भी देखे जिनके रूप बड़े अद्भुत थे और वे विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को धारण किये हुए थे। वे सभी श्रेष्ठ आभूषणों को धारण किये हुए थे। इसके अतिरिक्त १००००० राक्षसों की सेना नगर के मध्य भाग की रक्षा कर रही थी। उसी के मध्य में स्वर्ण फाटकों वाला रावण का महान राजमहल था जो त्रिकूट पर्वत के शिखर पर स्थित था। उसकी ऊंचाई इतनी थी कि वो आकाश को छूती दिखती थी। हनुमानजी को वो एक दूसरे स्वर्गलोक की भांति प्रतीत हुआ।

महाबली हनुमान ने वहां कितने ही रथ, गज, अश्व और असंख्य सेना को देखा। उन्होंने ऐसे कई राक्षसों को भी देखा जो बुद्धिमान, सुन्दर, मधुर वाणी बोलने वाले, ईश्वर में श्रद्धा रखने वाले और सुन्दर नाम रखने वाले थे। उन्हें देख कर हनुमान जी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने वहां अनेक रमणियों को भी देखा जो अनिंद्य सुंदरी, प्रसन्न और पतिव्रताएँ थी और अपने-अपने पतियों के साथ विहार कर रही थी।

फिर महाबली हनुमान राक्षसराज रावण के महल में गए। वो महल सात मंजिला था जो सोने के परकोटों से घिरा हुआ था। अनेकों भयानक राक्षस उस महल की रक्षा कर रहे थे। वो महल रथ, अश्व, हाथी दांत, बहुमूल्य आसनों, रत्नजड़ित पालकियों, चित्रशालाओं, क्रीड़ाभवन, असंख्य स्वर्ण प्रतिमाओं और सहस्त्रों पशु-पक्षियों से भरा था। इसके बाद हनुमान जी एक-एक कर सभी प्रमुख राक्षसों के घर जाकर माता सीता की खोज करने लगे और उन्हें वहां ना पाकर पुनः रावण के महल में लौट आये।

इसके बाद हनुमान जी की दृष्टि अनुपम पुष्पक विमान पर पड़ी जो मेघ के समान ऊँचा और सुवर्ण के समान सुन्दर और कांतिमान था। तो असंख्य बहुमूल्य रत्नों से जड़ा था और अनेकों वृक्षों, सरोवरों और पुष्पों से आच्छादित था। उस दिव्य विमान को बहुत सुन्दर ढंग से बनाया गया था। उसका फर्श स्वर्ण और मणियों द्वारा बनाया गया था तथा उस विमान में श्वेतभवन बने हुए थे। पुष्पक नाम का वह अद्भुत विमान अपनी ही आभा से जगमगाता रहता था।

पुष्पक विमान को एक बार देखने से जी ना भरने से हनुमान जी ने उसे एक बार फिर देखा। उसके सौंदर्य को किसी दृष्टि से मापा नहीं जा सकता था। उसका निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने किया था। उसमें कोई भी ऐसी वस्तु नहीं थी जिसे पूरे यत्न से ना बनाया गया हो। उस पुष्पक विमान में ऐसी-ऐसी विशेषताएं थी जो देवताओं के विमानों में भी नहीं थी। मन में जहाँ भी जाने का विचार हो, वो विमान वहां पहुँच जाता था। उसे पहले विश्वकर्मा ने ब्रह्माजी के लिए बनाया था और फिर कुबेर ने भारी तपस्या कर ब्रह्माजी से उस विमान को प्राप्त किया था। बाद में रावण ने कुबेर को परास्त कर उस विमान को प्राप्त किया। विश्वकर्मा द्वारा बनाये गए उस अद्भुत विमान को महाबली हनुमान देखते ही रह गए।

फिर हनुमान जी ने रावण के महल को देखा जिसकी लम्बाई एक योजन और चौड़ाई आधे योजन की थी। असंख्य हाथी और राक्षस उसकी रक्षा कर रहे थे। रावण का वो महल उसकी पत्नियों तथा हर कर लाई गयी कन्याओं से भरा हुआ था। उसका ऐश्वर्य स्वयं इंद्र के ऐश्वर्य को भी लज्जित कर रहा था। उसी भवन के मध्य में अद्वितीय पुष्पक विमान खड़ा था जो एक दूसरे भवन सा ही प्रतीत होता था। फिर हनुमान जी उस पुष्पक विमान पर चढ़ गए और वहां से पूरी लंका का निरिक्षण करने लगे।

फिर वे रावण के भवन में गए और उसे देख कर हनुमान जी ये सोचने लगे कि यही स्वर्गलोक या देवलोक है। रावण के भवन में एक फर्श पर एक विशाल कालीन बिछा हुआ था जिसपर सहस्त्रों सुंदरियाँ सोई हुई थी। उन स्त्रियों से घिरा रावण अपने पलंग पर सोया हुआ ऐसा लग रहा था जैसे नक्षत्रों के बीच चन्द्रमा। मदिरा के प्रभाव से अचेत रावण की सभी स्त्रियां एक दूसरे पर ही सोई हुई थे। उनका सौंदर्य एक से बढ़कर एक था। वहां पर ऐसी कोई भी स्त्री नहीं थी जिसे बल-पराक्रम से संपन्न होने के बाद भी रावण उनकी इच्छा के विरुद्ध हर लाया हो।

रावण की शैय्या भी अपने आप में अद्भुत थी। वह शैय्या एक वेदी पर रखी हुई थी जो स्फटिक मणि की बनी थी। उसमें अनेक प्रकार के रत्न जड़े गए थे। वह शैय्या वैदूर्यमणि, स्वर्ण और हाँथी-दांत से जड़ी हुई थी। उस पर बिछाए गए बिछौने भी बहुत मूलयवान थे। उस पलंग के मध्य में एक बहुमूल्य श्वेत छत्र था जो दिव्य मालाओं से सजा हुआ था। उसके चारो ओर बहुत सी स्त्रियां हाथों में चंवर लिए रावण को हवा कर रही थी। उस कक्ष में सदैव दिव्य गंध आ रही थी। ऐसी अद्वितीय शैय्या पर रावण जैसे अद्वितीय योद्धा को निश्चिंत सोता देख कर हनुमान जी को बड़ा आश्चर्य हुआ।

वहीँ हनुमान जी ने उन स्त्रियों से अलग एक शैय्या पर सोइ हुई मंदोदरी को देखा जिनका रूप त्रिलोक में सबसे सुन्दर था। उन्हें देख कर हनुमानजी को ये भ्रम हो गया कि कदाचित यही माता सीता है। लेकिन फिर तुरंत ही उन्होंने ये सोचा कि श्रीराम से बिछड़ कर माता सीता कदापि रावण के भवन में निश्चिंत होकर नहीं सो सकती। इसीलिए उन्होंने समझ लिया कि ये कोई दूसरी स्त्री है।

फिर पवनपुत्र वहां की मद्यशाला में गए जहाँ प्रचुर मात्रा में भोजन, मांस, चटनियाँ, पेय कर भक्ष्य पदार्थ, राग, मदिरा, सुरा इत्यादि भरे हुए थे। वहां पर भी अनेकों स्त्रियां मदिरा और निद्रा के मद में बेसुध होकर सोइ हुई थी। उसी समय हनुमान जी के मन में एक भय भी हुआ कि उन्होंने कभी पराई स्त्री को इस प्रकार नहीं देखा। आज माता सीता के संधान के कारण उन्हें इन स्त्रियों को इस स्थिति में देखना पड़ रहा है। कहीं पर-स्त्री को देखना उनका विनाश ना कर दे। फिर उन्होंने सोचा कि उन्होंने अवश्य इन स्त्रियों को देखा है किन्तु उन्हें देखते समय उनके मन में किसी प्रकार का विकार नहीं था। ये सोच कर वो थोड़े निश्चिंत हुए।

जब उन्हें भवनों में कहीं माता सीता दिखाई नहीं दी तब वे लंका में अनेकों स्थानों पर गए। वो लंका ऐसी लगती थी जैसे परमात्मा ने उसे स्वयं अपने हाथों से गढ़ा हो। जब उन्हें माता सीता कहीं नहीं दिखी तो वे निराश हो गए और फिर अशोक वाटिका की चारदीवारी पर चढ़ गए। वो वाटिका असंख्य वृक्षों से भरी थी जो फलों और फूलों से लदे हुए थे। पक्षियों के कलरव से वो अद्भुत वाटिका गूंज रही थी। बहुत सारे सरोवर उस वाटिका में थे जो कमलों से भरे थे। काम्यक, चैत्ररथ और नंदन वन से भी अधिक शोभा उस अशोक वाटिका की थी।

उसी वाटिका में हनुमानजी ने एक विशाल मंदिर देखा जिसमें १००० खम्भे लगे थे। उसकी सीढ़ियां मूंगें की बनी थी और वेदियां स्वर्ण से जड़ी थी। उसी चैत्यप्रासाद में उन्होंने अत्यंत दीन अवस्था में माता सीता को देखा। इसके आगे की कथा तो हम जानते ही हैं। किस प्रकार महाबली हनुमान ने कई राक्षसों का वध किया, मेघनाद के ब्रह्मास्त्र में बंध कर वे रावण के राजसभा पहुंचे जो इंद्र के राजसभा से भी अधिक वैभवशाली थी और किस प्रकार उन्होंने लंका दहन कर रावण के मान का मर्दन किया। तो इस प्रकार हमें वैभवशाली लंका के विषय में पता चलता है।

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