श्रीराम का रूप कैसा था?

श्रीराम का रूप कैसा था?
श्रीराम का रूप कितना मनोहर था उसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता तो नहीं है क्यूंकि हम सभी भक्तों के मन में भी उनके मनोहर रूप की अलग-अलग छवि बसी हुई है। वैसे तो श्रीराम के रूप के विषय में कई ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु उनके रूप का जो सबसे प्रामाणिक वर्णन मिलता है वो हमें वाल्मीकि रामायण में मिलता है। रामायण के सुन्दर कांड के ३५वें सर्ग में हमें इसका वर्णन मिलता है।

जब हनुमान माता सीता से मिलकर उन्हें अपना परिचय देते हैं तब भी माता सीता के मन में हनुमान जी के प्रति संदेह रहता है। उसे दूर करने के लिए वे हनुमान जी से पूछती है कि यदि तुमने सच में श्रीराम और लक्ष्मण को देखा है तो उनके रूप और शारीरिक चिह्नों का वर्णन करो। तब माता सीता के भ्रम को दूर करने के लिए हनुमान जी श्रीराम के रूप और शारीरिक चिह्नों का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि आप उन दोनों का रूप जानते हुए भी मुझसे पूछ रही है इससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है। मैं श्रीराम और लक्ष्मण के जिन-जिन लक्षणों को जानता हूँ उसे सुनिए।

श्रीराम के नेत्र कमल के समान विशाल और सुन्दर हैं। उनका मुख पूर्णिमा के चन्द्रमा की भांति मनोहर है। वे तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के समान, बुध्दि में बृहस्पति के समान और यश में देवराज इंद्र के समान हैं। वे जगत के चारो वर्णों की रक्षा करते हैं। वे राजनीति में पूर्ण शिक्षित, ब्राह्मणों के उपासक, ज्ञानवान, शीलवान, विनम्र और अपने शत्रुओं को संताप देने वाले हैं। वे चारो वेद, धनुर्वेद और छहों वेदाङ्गों के भी विद्वान हैं।

उनके कंधे पुष्ट, भुजाएं बड़ी, गला शंख के समान और मुख सुन्दर है। उनके गले की हंसली मांस से ढकी हुई है तथा नेत्र कुछ-कुछ लालिमा से भरे हैं। उनकी स्वर दुदुम्भी के समान गंभीर है और शरीर का रंग सुन्दर एवं चिकना है। उनके सभी अंग सुडौल और बराबर हैं। उनकी कांति श्याम रंग की है। उनका वक्षस्थल, कलाई और मुट्ठी दृढ हैं। भौहें, भुजाएं और मेढ़ लम्बे हैं। केशों का अग्रभाग और घुटने समान और बराबर हैं।

उनका वक्षस्थल, नाभि के किनारे का भाग और उदर उभरे हुए हैं। नेत्रों के कोने, नख और तलवे लाल हैं। उनके दोनों पैरों की रेखाएं और सर के बाल चिकने हैं और स्वर, चाल एवं नाभि गंभीर हैं। उनके उदर और गले में तीन रेखाएं हैं। तलवों के मध्यभाग, पैरों की रेखाएं और वक्ष का अग्रभाग धंसे हुए हैं। गाला, पीठ और दोनों पिंडलियाँ छोटे हैं। उनके मस्तक में तीन भवरें हैं। पैरों के अंगूठे के नीचे तथा ललाट में चार-चार रेखाएं हैं।

श्रीराम चार हाथ ऊँचे हैं। उनके कपोल, भुजाएं, जांघें और घुटने बराबर हैं। साथ ही उनके भौहें, नथुने, नेत्र, कान, होठ, वक्ष, कोहनी, कलाई, जांघ, घुटने, कमर, हाथ और पैर और चारो दाढ़ें बराबर और समान हैं। वे सिंह, बाघ, हाथी और सांड, इन चार प्रकार की गति से चलते हैं। उनके होठ, ठोढ़ी और नासिका प्रशस्त हैं। उनके केश, नेत्र, दांत, त्वचा और तलवों में स्निगधता भरी हुई है। उनकी दोनों भुजाएं, दोनों जांघें, दोनों पिंडलियाँ और सभी अंगुलियां उत्तम लक्षणों से युक्त हैं।

उनके नेत्र, मुख, जिह्वा, होठ, तालु, वक्ष, नख, हाथ और पैर कमल के समान हैं। उनकी छाती, मस्तक, ललाट, गाला, भुजाएं, कंधे, नाभि, चरण, पीठ और कान विशाल हैं। वे श्री, यश और प्रताप से व्याप्त हैं। उनके मातृकुल और पितृकुल दोनों अत्यंत शुद्ध हैं। उनका पार्श्वभाग, उदर, वक्षस्थल, नासिका, कंधे और ललाट ऊँचे हैं। उनके केश, नख, लोम, त्वचा, अँगुलियों के पोर, बुध्दि और दृष्टि सूक्ष्म हैं। वे पूर्वाह्न में धर्म का, मध्याह्न में अर्थ का और अपराह्न में काम का अनुष्ठान करने वाले हैं।

उनके भाई सुमित्रकुमार लक्ष्मण भी बड़े तेजस्वी हैं। अनुराग, रूप और सद्गुणों की दृष्टि से वे भी श्रीराम के समान ही हैं। उन दोनों भाइयों के केवल इतना अंतर ही है कि लक्ष्मण की कांति सुवर्ण के समान गौर वर्ण की है और श्रीरामचन्द्र जी की कांति मेघ की भांति श्याम है। इस प्रकार श्रीराम और लक्ष्मण के रूप और लक्षणों का वर्णन करने पर माता सीता को उनपर विश्वास हो गया।

रामायण के अतिरिक्त श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी श्रीराम और माता सीता के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन किया है। उन्होंने तो श्रीराम और माता सीता का रूप साक्षात्भ गवान विष्णु और माता लक्ष्मी के रूप से भी अधिक सुन्दर बताया है।

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