महाभारत में जो एक पात्र है जिसके बारे में सबसे अधिक गलत और भ्रामक जानकारी आजकल इंटरनेट और टीवी सीरियलों में फैली है वो है सूर्यपुत्र कर्ण। कर्ण के विषय में जितनी भ्रामक जानकारियाँ आज हमें मिलती है उल्टी शायद और किसी पात्र के बारे में नहीं मिलती। ऐसी ही एक कथा जनमानस में फैली है जो गुरु द्रोणाचार्य द्वारा कर्ण के सूतपुत्र होने के कारण उसे शिक्षा ना दिए जाने के विषय में है।
तो जो कथा आज जनमानस में फैली है और अधिकतर लोग उसे ही सच मानते हैं वो ये है कि जब द्रोणाचार्य कौरवों के गुरु बने तो कर्ण के पालक पिता अधिरथ अपने पुत्र कर्ण को लेकर गुरु द्रोणाचार्य के पास आये और उनसे कर्ण को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना की। किन्तु द्रोणाचार्य ने कर्ण के सूतपुत्र होने के कारण उसे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया। इसके बाद कर्ण ने भगवान परशुराम से शिक्षा ग्रहण की।
किन्तु ऐसा नहीं है। मूल व्यास महाभारत के अनुसार कर्ण भी अन्य कौरवों और पांडवों की भांति ही गुरु द्रोणाचार्य का ही शिष्य था। इसका वर्णन हमें आदिपर्व के अध्याय १३१ के श्लोक ११ और १२ में मिलता है। इसके अनुसार -
वृष्णयश्चान्धकाश्चैव नानादेश्याश्च पार्थिवाः।
सूतपुत्रश्च राधेयो गुरुं द्रोणमियात्तदा।।
अर्थात: वृष्णिवंशी तथा अंधकवंशी क्षत्रिय, नाना देशों के राजकुमार तथा राधानंदन सूतपुत्र कर्ण - ये सभी आचार्य द्रोण के पास अस्त्र शिक्षा लेने को आये।
स्पर्धमानस्तु पार्थेन सूतपुत्रोऽत्यमर्षणः।
दुर्योधनं समाश्रित्य सोऽवमन्यत पाण्डवान्।।
अर्थात: सूतपुत्र कर्ण सदा अर्जुन से लाग-डांट रखता और अत्यंत अमर्ष में भरकर दुर्योधन का सहारा ले पांडवों का अपमान किया करता था।
इसके बाद आदिपर्व के अध्याय १३७ में जब शिक्षा पूरी होने के बाद गुरु द्रोण सभी शिष्यों से द्रुपद को बंदी बना कर लाने को कहते हैं तब अन्य कौरवों की भांति कर्ण भी पहले जाने की जिद करता है। इसका वर्णन हमें इस अध्याय के श्लोक ५, ६ और ७ में मिलता है। इसमें कहा गया है -
ततोऽभिजग्मुः पञ्चालान्निघ्नन्तस्ते नरर्षभाः।
ममृदुस्तस्य नगरं द्रुपदस्य महौजसः।।
दुर्योधनश्च कर्णश्च युयुत्सुश्च महाबलः।
दुःशासनो विकर्णश्च जलसन्धः सुलोचनः।।
एते चान्ये च बहवः कुमारा बहुविक्रमाः।
अहं पूर्वमहं पूर्वमित्येवं क्षत्रियर्षभाः।।
अर्थात: तदन्तर दुर्योधन, कर्ण, महाबली युयुत्सु, दुःशासन, विकर्ण, जलसंध तथा सुलोचन - ये और दूसरे भी बहुत से महापराक्रमी राजकुमार पहले मैं युद्ध करूँगा, पहले मैं युद्ध करूँगा, इस प्रकार कहते हुए पांचालदेश जा पहुंचे और वहां के निवासियों को मारते पीटते हुए महाबली राजा द्रुपद की राजधानी को भी रौंदने लगे।
इसके आगे द्रुपद और कर्ण अदि योद्धाओं के युद्ध के बारे में श्लोक २१ और २२ में बताया गया है।
व्यधमत्तान्यनीकानि तत्क्षणादेव भारत।
दुर्योधनं विकर्णं च कर्णं चापि महाबलम्।।
नानानृपसुतान्वीरान्सैन्यानि विविधानि च।
अलातचक्रवत्सर्वं चरन्बाणैरतर्पयत्।।
अर्थात: उस समय दुर्योधन, विकर्ण, कर्ण आदि बड़े क्रोध में आकर बाणों की वर्षा करने लगे। तभ द्रुपद उन सभी को विविध बाणों से तृप्त करने लगे।
कर्णदुर्योधनौ चोभौ शरैः सर्वाङ्गसन्धिषु।
अष्टाविशन्तिभिः सर्वैः पृथक पृथगरिंदमः।।
अर्थात: इसके बाद द्रुपद ने दुर्योधन और कर्ण के शरीर में २८-२८ बाण पृथक पृथक मारे।
आगे श्लोक २४ के बाद दक्षिणात्य पाठ के अनुसार कर्ण द्रुपद की बाण वर्षा के सामने ठहर नहीं सके और युद्ध छोड़ कर भाग गए।
पाञ्चालशरर्भिन्नङ्गो भयमासाद्य वै वृषः।
कर्णों रथादवप्लुत्य पलायनपरोSभवत।।
अर्थात: पांचालराज द्रुपद के बाणों से कर्ण के सम्पूर्ण अंग क्षत-विक्षत हो गए और वह भयभीत हो रथ से कूद कर भाग चला।
महाभारत के वन पर्व के अध्याय ३०९ के श्लोक १६, १७ और १८ में भी कर्ण को द्रोणाचार्य का शिष्य ही बताया गया है।
सूतस्त्वधिरथः पुत्रं विवृद्धं समयेन तम्।
दृष्ट्वा प्रस्थापयामास पुरं वारणसाह्वयम्।।
अर्थात: अधिरथ सूत ने अपने पुत्र को बड़ा हुआ देख उसे यथा समय हस्तिनापुर भेज दिया।
तत्रोपसदनं चक्रे द्रोणस्येष्वस्त्रकर्मणि।
सख्यं दुर्योधनेनैवमगमत्स च वीर्यवान्।।
अर्थात: वहां उसने धनुर्वेद की शिक्षा लेने के लिए आचार्य द्रोण की शिष्यता स्वीकार की। इस प्रकार पराक्रमी कर्ण की दुर्योधन के साथ मित्रता हो गयी।
द्रोणात्कृपाच्च रामाच्च सोऽस्त्रग्रामं चतुर्विधम्।
लब्ध्वा लोकेऽभवत्ख्यातः परमेष्वासतां गतः।।
अर्थात: वह द्रोणाचार्य कृपाचार्य तथा परशुराम से चारो प्रकार की अस्त्रविद्या सीख कर संसार में एक महान धनुर्धर के रूप में विख्यात हुआ।
तो इन श्लोकों से हमें पता चलता है कि कर्ण भी द्रोणाचार्य के बांकी शिष्यों की भांति उन्ही के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करता था। साथ ही वो द्रोण की गुरुदक्षिणा के लिए द्रुपद से युद्ध करने भी गया था। यदि कर्ण द्रोणाचार्य का शिष्य नहीं होता तो उसे द्रुपद से युद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं थी।
तो एक बार फिर से अनुरोध करूँगा कि आज कल के फालतू टीवी सीरियलों और इंटरनेट की भ्रामक जानकारियों से दूर रहें और अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करें ताकि आपको सही जानकारी प्राप्त हो सके।
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