हिन्दू धर्म में गंगाजी का क्या महत्त्व है इसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। लगभग हर ग्रन्थ में माता गंगा के विषय में कोई ना कोई वर्णन मिलता है। गंगा जी के बारे में सबसे पहला वर्णन हमें ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के १०वें मंडल के ७५वें सूक्त, जिसे नदीस्तुति सूक्त कहा जाता है, उसमें कई नदियों का वर्णन है और यहीं हमें गंगा का भी वर्णन मिलता है। इसी सूक्त के ५वें श्लोक में हमें गंगा और उनके साथ यहाँ ९ और नदियों का वर्णन है।
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शास्त्रों में कितने प्रकार के विवाह बताये गए हैं?
हिन्दू धर्म में विवाह को १६ संस्कारों में से एक माना गया है। आम और पर लोगों को एक ही प्रकार के विवाह के विषय में पता होता है। कुछ लोग, जिन्होंने अपने धर्म ग्रंथों का थोड़ा अध्ययन किया है, उन्हें गन्धर्व विवाह के बारे में भी थोड़ी जानकारी होती है। किन्तु आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि हमारे शास्त्रों में एक दो नहीं बल्कि आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन दिया गया है। महाभारत में भी दुष्यंत और शकुंतला प्रसंग में हमें इन विवाहों के विषय में पता चलता है।
जब भृगु ऋषि के श्राप के कारण अग्निदेव रुष्ट हो गए
ब्रह्माजी के पुत्र महर्षि भृगु के विषय में तो हम सब जानते ही हैं। उनकी पत्नी का नाम था पुलोमा जो अद्वितीय सौंदर्य की स्वामिनी थी। एक बार महर्षि भृगु स्नान के लिए आश्रम से बाहर गए हुए थे। उस समय पुलोमा गर्भवती थी। उसी समय एक राक्षस जिसका नाम भी संयोग से पुलोमा ही था, वो आश्रम पर आया। भृगु ऋषि की पत्नी को देखते ही वो सुध-बुध खो बैठा। उसने निश्चय किया कि वो पुलोमा का हरण कर लेगा।
श्रीराम का रूप कैसा था?
श्रीराम का रूप कितना मनोहर था उसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता तो नहीं है क्यूंकि हम सभी भक्तों के मन में भी उनके मनोहर रूप की अलग-अलग छवि बसी हुई है। वैसे तो श्रीराम के रूप के विषय में कई ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु उनके रूप का जो सबसे प्रामाणिक वर्णन मिलता है वो हमें वाल्मीकि रामायण में मिलता है। रामायण के सुन्दर कांड के ३५वें सर्ग में हमें इसका वर्णन मिलता है।
जन्मेजय के सर्पयज्ञ में मारे गए मुख्य-मुख्य नागों के नाम
हम सभी परीक्षित पुत्र जन्मेजय द्वारा किये गए सर्पयज्ञ के विषय में जानते ही हैं। सर्पयज्ञ और उसके इतिहास के विषय में विस्तृत लेख हम कभी और प्रकाशित करेंगे। इस लेख में हम उस सर्पयज्ञ में भस्म हुए मुख्य-मुख्य नागों के विषय में जानेंगे। इन सभी नागों का वर्णन महाभारत के आदि पर्व के अंतर्गत सर्पनामकथनविषयक पर्व में दिया गया है।
जब तक्षक ने धन देकर काश्यप ऋषि को लौटा दिया
आपने महाराज परीक्षित वाले लेख में पढ़ा था कि किस प्रकार कलियुग के प्रभाव में आकर उन्होंने ऋषि शमीक के कंधे पर एक मरे हुए सर्प को डाल दिया। इससे क्रोधित होकर उनके पुत्र श्रृंगी ने महाराज परीक्षित को ये श्राप दिया कि आज से सातवें दिन नागराज तक्षक के डंसने से उनकी मृत्यु हो जाएगी। ये सुनकर महाराज परीक्षित बड़ा घबराये और अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर लिया, किन्तु फिर भी सबको ये विश्वास था कि तक्षक से उन्हें कोई नहीं बचा सकता।
महर्षि उत्तंक
पिछले लेख में हमने महर्षि आयोदधौम्य के तीन शिष्यों - आरुणि, उपमन्यु और वेद के विषय में पढ़ा था। इस लेख में हम महर्षि उत्तंक के विषय में जानेंगे जो महर्षि वेद के ही शिष्य थे। महर्षि उत्तंक की कथा हमें महाभारत के दो पर्वों में मिलती है - आदि पर्व और आश्वमेधिक पर्व। हालाँकि दोनों कथाओं का सार एक ही हैं किन्तु दोनों में महर्षि उत्तंक के गुरु अलग-अलग बताये गए हैं। आदि पर्व के अनुसार उनके गुरु थे महर्षि वेद जबकि आश्वमेधिक पर्व के अनुसार महर्षि उत्तंक के गुरु महर्षि गौतम बताये गए हैं।
आरुणि, उपमन्यु और वेद - एक ही गुरु के तीन अद्भुत शिष्य
हिन्दू धर्म में सदा से गुरु शिष्य परंपरा रही है। हमारे इतिहास में एक से एक शिष्य हुए हैं जिन्होंने अपने गुरु के लिए बड़ा से बड़ा बलिदान दिया, किन्तु आज हम एक ही गुरु के तीन ऐसे शिष्यों के विषय में बताएँगे जैसे फिर किसी और गुरु को नहीं मिले। इसका वर्णन हमें महाभारत के आदि पर्व के तीसरे अध्याय में मिलता है।
कितनी भव्य थी रावण की लंका?
लंका की भव्यता के विषय में हम सभी ने सुना है। विशेषकर वाल्मीकि रामायण में इसके विषय में बहुत विस्तार से लिखा गया है। रामायण के सुन्दर कांड के चौथे सर्ग में हमें लंका के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है जब महाबली हनुमान माता सीता को खोजने के लिए लंकिनी को परास्त कर लंका में प्रवेश करते हैं। वहां हनुमान जी ने लंका को जैसा देखा उससे हमें उसकी भव्यता और रावण के ऐश्वर्य का पता चलता है। उसी का संक्षेप में वर्णन हम इस लेख में करने वाले हैं।